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३९. तन, मन और आत्मा का सामंजस्य
महत्त्वपूर्ण प्रश्न : महत्त्वपूर्ण उत्तर
हम प्रत्येक आदमी को जानते हैं, पहचानते हैं । जानने का माध्यम है शरीर | हम शरीर के द्वारा किसी को जानते हैं । व्यक्ति की आकृति देखते हैं और उसे जान लेते हैं, पहचान लेते हैं, किन्तु मनुष्य कोरा शरीर नहीं है । उसमें एक मन है, जो शरीर से सूक्ष्म है | वह दिखाई नहीं देता | क्या मन अंतिम वस्तु है ? नहीं है । मन से भी सूक्ष्म है हमारी आत्मा । हमारा व्यक्तित्व जो है, वह तीन का योग है-शरीर, मन और आत्मा । अभी दो दिन पूर्व डॉ० नथमल टांटिया आए थे । हाल ही में उन्होंने हालैण्ड और इटली की यात्रा की थी । वहां पर ओकी इन्स्टीट्यूट के द्वारा शिविर लगाए जाते हैं और जैन विश्व भारती से प्रवचन देने के लिए, प्रेक्षाध्यान का प्रयोग कराने के लिए डॉ० टांटिया बहुत बार वहां बुलाए जाते हैं । इस बार वे वापस आए तो मैंने पूछा- वहां चर्चा का मुख्य विषय क्या था ?' उन्होंने बताया-मेरे सामने एक प्रश्न आया--'प्राचीन योग और आज का नया योग (प्रेक्षाध्यान को वे New System of yoga कहते हैं)-इन दोनों में अन्तर क्या है ?' टांटियाजी ने बड़ा माकूल उत्तर दिया-प्राचीन ध्यान-पद्धतियों में किसी-किसी पद्धति में केवल शरीर पर ध्यान दिया जाता है, किसी पद्धति में केवल आत्मा पर ध्यान दिया जाता है किन्तु नयी पद्धति----प्रेक्षाध्यान में शरीर, मन और आत्मा–तीनों पर समान रूप से ध्यान दिया जाता है । यह इसकी अपनी प्रमुख विशेषता है । वास्तव में यह प्रश्न भी महत्त्वपूर्ण था और उत्तर भी महत्त्वपूर्ण ।
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