Book Title: Amantran Arogya ko
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 230
________________ २१६ आमंत्रण आरोग्य को 1 है— दो व्यक्ति बात कर रहे हैं। तीसरा व्यक्ति विचारमग्न बैठा है । तीसरे व्यक्ति से पूछा जाए ये दोनों क्या बातें कर रहे थे ? उसका उत्तर होगामुझे पता नहीं । मैंने कुछ सुना ही नहीं । व्यक्ति को उसकी इस बात पर विश्वास नहीं होता किन्तु यह सचाई है । यह एक प्रत्याहार है कि आंख-कान खुले हैं, बात हो रही है किन्तु व्यक्ति कुछ भी नहीं सुन रहा है । शब्द के साथ श्रोत्रइन्द्रिय का सम्बन्ध स्थापित नहीं हुआ, प्रत्याहार हो गया । ऐसे सभी इन्द्रियों का प्रत्याहार होता है । सभी इन्द्रियों के विषय में यही बात है । जब आदमी अन्यमनस्क होता है, किसी दूसरी घटना के साथ उसका मन जुड़ा होता है तो उसके सामने चाहे जितने विषय आ जाएं, इन्द्रियों उसे ग्रहण नहीं करतीं । अन्यमनस्कता या शून्यता की स्थिति में सहज प्रत्याहार होता है । सम्मोहन प्रत्याहार प्रत्याहार की दूसरी घटना घटित होती है सम्मोहन में । एक सम्मोहक किसी पात्र को सम्मोहित करता है । उस सम्मोहन की अवस्था में प्रत्याहार घटित हो जाता है, इन्द्रिय और विषय का सम्बन्ध ही अन्यथा हो जाता है । जिसे सम्मोहित कर लिया जाता है, उसके हाथ में नमक रख दिया जाता है । सम्मोहक सुझाव देता है— देखो ! तुम्हारे हाथ में चीनी है । इसका स्वाद बहुत मीठा है और तुम इसे खा रहे हो । वह नमक को खाएगा किन्तु उस लवण का स्वाद भी उसे मीठा आएगा | यह भी एक प्रत्याहार है किन्तु यह प्रत्याहार बहुत उपयोगी नहीं है । साधना के क्षेत्र में वह प्रत्याहार या प्रतिसंलीनता उपयोगी होती है। जहां स्वेच्छाकृत प्रत्याहार का विवेककृत प्रत्याहार होता है । ऐसे प्रत्याहार से ही मनोबल बढ़ता है । प्रत्याहार संकल्पकृत हो संकल्प - शक्ति को जगाने का मनोबल को बढ़ाने का एक सशक्त उपाय है प्रत्याहार | साधक को इन्द्रिय-विजय करना चाहिए। व्यक्ति के मन में आयाआज मैं एक घंटा तक सामने से गुजरने वाले किसी भी व्यक्ति को आसक्ति से नहीं देखूंगा । यह एक प्रकार का प्रत्याहार है । एक संकल्प किया— एक घंटा तक आंख बंद कर बैठूंगा, किसी को नहीं देखूंगा । यह स्वेच्छाकृत प्रत्याहार है । विषय के साथ इन्द्रिय का सम्बन्ध स्थापित नहीं करूंगा, यह चक्षु इन्द्रिय 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 228 229 230 231 232 233 234 235 236