Book Title: Amantran Arogya ko
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 233
________________ मानसिक आरोग्य और प्रत्याहार २१९ के संकल्प का पालन करेगा, उत्सव में बनने वाले स्वादिष्ट और मनोरम भोग्य पदार्थों से अपने आपको अलग रखेगा । यह है मन की शक्ति का विकास. सब कुछ सामने होने पर भी न खाने का संकल्प । मानसिक आरोग्य और प्रत्याहार हम दोनों पहलुओं को सामने रखें, मन की दुर्बलता और मन का बलदोनों को सामने रखें । मन का बल अभ्यास के द्वारा ही बढ़ सकता है, मन का बल एक बार में नहीं बढ़ेगा, वह धीरे-धीरे क्रमशः बढ़ेगा । इन्द्रियां और उनसे जुड़ने वाले विषयों को अलग-अलग रखने की क्षमता जैसे-जैसे बढ़ेगी, मनोबल बढ़ता चला जाएगा । ___ मानसिक आरोग्य और प्रत्याहार-इन दोनों के सम्बन्ध में हम जानें और इसकी साधना को क्रमशः बढ़ाएं । एक बिन्दु वह आएगा, हमारे भीतर इतनी क्षमता आ जाएगी कि सारी इन्द्रियों के विषय सामने प्रस्तुत हैं किन्तु उनक हमारे सामने होना या न होना बराबर है । इस स्थिति का निर्माण बिना साधना के कभी संभव नहीं है । प्रेक्षाध्यान का उद्देश्य है-धीरे-धीरे यह क्षमता बढ़ती चली जाए । जो व्यक्ति इस क्षमता को प्राप्त कर लेता है, उसे कोई भी मनोगत वस्तु विवश नहीं कर पाएगी । कितनी भी आकर्षक चीज सामने आ जाए, वह चाहेगा तो खाएगा न चाहे तो नहीं खाएगा । चाहे तो देखेगा न चाहे तो नहीं देखेगा-। कोई भी प्रलोभन उसे च्युत नहीं कर पाएगा, मन का पूरा नियंत्रण सध जाएगा । मैंने देखा है-आचार्यवर आहार से निवृत्त हो हाथ धो लेते हैं, मानो न खाने का संकल्प कर लेते हैं । उसके बाद कोई भी संत आए, कितन भी स्वादिष्ट और पौष्टिक वस्तु लाये, उसके लिए कितनी ही प्रार्थना करे, आचार्यवर कुछ भी नहीं लेते । यह एक निरपवाद जैसी बात है । वस्तुतः यह एक संकल्प है, प्रत्याहार है । हम इस तरह की संकल्प शक्ति का विकास करें, प्रत्याहार का अभ्यास करें । यह अभ्यास एक दिन मनोबल को उस बिन्दु पर ले ज सकता है, जहां आदमी बड़े से बड़ा निर्णय और निश्चय कर लेता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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