Book Title: Amantran Arogya ko
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 224
________________ २१० आमंत्रण आरोग्य को रुग्ण ज्यादा हैं, स्वस्थ कम सूफी सन्त नदी से स्नान कर आ रहा था । वह एक गली से गुजर रहा था तो किसी ने ऊपर से राख और कोयले की बोरी एक साथ उसके ऊपर उलट दी । साथ में चल रहे लोग क्रोध से उत्तेजित हो गए । संत ने उन लोगों को शान्त किया । मुस्कराते हुए बोले-'भोले आदमियों ! हो सकता है मेरा कसूर इतना बड़ा रहा हो कि कोई मुझपर आग डालता । इस व्यक्ति ने कितनी मेहरबानी की है कि इसने आग नहीं डाली ठंडे कोयले और बुझी राख ही डाली । कितना भला आदमी है ।' यह स्वर उसी व्यक्ति के मुंह से निकलता है जो मानसिक दृष्टि से स्वस्थ है । एक आदमी बड़ा क्रोधी है, लालची है । वह समझता है कि यह कोई बुराई नहीं है किन्तु ठंडे दिमाग से सोचें तो पता चलेगा-लोभ भी एक बड़ी मानसिक बीमारी है । आज यह मान लिया गया—महत्त्वाकांक्षा विकास का लक्षण है। महत्त्वाकांक्षा मात्र जीवन चलाने के लिए हो तो उसे उचित मान लिया जाए किन्तु वह असीम बन जाए तो एक बीमारी ही कहलाएगी । स्वयं बड़ा बने, बेटा भी बने और पोता भी बने—यह महत्त्वाकांक्षा जागे भी तो बड़ा बनने के उचित-अनुचित तरीकों का विवेक भी समाप्त हो जाएगा । आज समाज में तेजी से फैल रहा भाई-भतीजावाद भी मानसिक-रुग्णता का ही परिणाम है । आज राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्र का विश्लेषण करें तो मानसिक दृष्टि से रुग्ण व्यक्ति ज्यादा मिलेंगे और स्वस्थ व्यक्ति कम मिलेंगे । ज्यादातर आदमी अपनी बुद्धि से नहीं चलते, अपनी मनीषा से नहीं चलते । अपनी बुद्धि या विवेक से चलने वाले लोगों की संख्या कम है । कारण है महत्त्वाकांक्षा __मानसिक बीमारी का प्रमुख कारण है—महत्त्वाकांक्षा । प्रतिस्पर्धा के इस युग में इसीलिए मानसिक रूप से स्वस्थ लोगों की संख्या कम है और अस्वस्थ लोगों की संख्या ज्यादा है । काम, क्रोध, लोभ, मोह-ये सब मानसिक बीमारियां हैं । जिस प्रकार- सिरदर्द, पेटदर्द, घुटने का दर्द, बुखार आदि शरीर की बीमारियों की एक लम्बी तालिका है, उसी प्रकार मन की बीमारियों की भी एक लम्बी सूची है | आयुर्वेद ने इसकी पूरी तालिका बनाई है । इसकी अध्यात्म के क्षेत्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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