Book Title: Amantran Arogya ko
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 227
________________ मानसिक आरोग्य और अध्यात्म २१३ चली जाओ।' बुढ़िया बड़ी समझदार, शान्त और धैर्यवान थी । उसने कहा'मैं चली जाऊंगी किन्तु जाने से पहले एक बार मुझे राजा के दर्शन कराओ ।' कर्मचारियों ने उसकी बात स्वीकार कर ली । वे उसे राजा के पास ले गए । बुढ़िया ने राजा को अभिवादन कर कहा-'महाराज ! इतने दिन आपके पड़ोस में रही । अब मैं जा रही हूं किन्तु मेरा एक सवाल है ।' राजा को उसकी गंभीरता और दृढ़ता पर बड़ा आश्चर्य हुआ । राजा ने स्वीकृति दे दी—'पूछो, क्या पूछना चाहती हो ?' बुढ़िया बोली-'महाराज ! आप न जाने कब से यहां रह रहे हैं ! आपके पुरखे भी यहीं रहते थे । मेरी झोंपड़ी भी तभी से यहां है | मैं आपके इस विशाल राज-प्रासाद और वैभव को सहन करती रही किन्तु आप मेरी इस जीर्ण झोंपड़ी को क्यों नहीं सहन कर पाए ?' इसी प्रश्न का उत्तर जानने की इच्छा है । राजा निरुत्तर हो गया । उसने अदेश दिया- 'बुढ़िया को यहीं रहने दिया जाए। उसकी झोंपड़ी को न उजाड़ा जाए ।' यात्रा शुरू करें आदमी सहन नहीं कर पाता । जब प्रिय और अप्रिय संवेदन जागते हैं, आदमी स्थिर नहीं रह पाता | समर्थ या शक्तिशाली तो बिलकुल ही सहन नहीं कर पाता । सामान्य आदमी हो या विशेष, जब-जब ये संवेदन जागते हैं, आदमी विचित्र स्थिति में चला जाता है । ध्यान की सबसे बड़ी उपलब्धि है-हमारी ऐसी चेतना जाग जाए, ऐसी दृष्टि जाग जाए, हम प्रिय-अप्रिय संवेदन का विश्लेषण कर सकें और उनसे बच सकें । यह बहुत कठिन काम है, किन्तु हम इस दिशा में चलना शुरू करें | एक बच्चे की तरह क्रमशः खड़े होने, चलने और बोलने की स्थिति की तरह ही इसका विकास होता चला जाएगा । ध्यान के द्वारा हम एक-दो कदम भी चल पड़े तो कभी-न-कभी यह लम्बी यात्रा पूरी कर सकेंगे। स्वयं प्रयोगशाला बनें ध्यान-साधना की यह यात्रा एक-दो दिन में नहीं, एक जन्म तक भी पूरी होनेवाली नहीं है । यह लम्बी यात्रा है किन्तु यदि हमने चलना शुरू कर दिया, संकल्प के साथ चलना शुरू कर दिया तो मंजिल निकट आती जाएगी । यदि सहन करने की शक्ति आ गई तो समझें-एक कसौटी मिल गई । हम इस कसौटी से अपने आपको परखते रहें, पता चलता रहेगा-ध्यान सधा या नहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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