Book Title: Amantran Arogya ko
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 226
________________ २१२ आमंत्रण आरोग्य को और मनोरोग डॉक्टरों की संख्या बढ़ा देगी किन्तु क्या यह इस समस्या का सही निदान है ? जब तक पागल होने के कारण विद्यमान हैं, पागलखानों की संख्या बढ़ाने से इसका उपचार कैसे संभव होगा । चिकित्सालय और चिकित्सक रोग की चिकित्सा करते हैं, रोग न होने की चिकित्सा नहीं करते । इस ओर हमारा ध्यान नहीं जाता कि रोग कैसे पैदा हुआ ? क्यों पैदा हुआ ? बड़ी दिलचस्प बात है-पागल होने की चिकित्सा की जा रही है किन्तु पागल न होने की कोई तजबीज नहीं की जा रही है । धर्म का सूत्र : मानसिक स्वास्थ्य का सूत्र ध्यान-साधना का सारा उपक्रम इसलिए है कि आदमी पागल न हो, मानसिक दृष्टि से रुग्ण बने ही नहीं | इसके दो उपाय बताए गए हैं--इच्छा का संयम और द्वेष का संयम अर्थात् राग पर नियंत्रण और द्वेष पर नियन्त्रण । यही है मानसिक स्वास्थ्य का सूत्र और यही है धर्म का सूत्र । मन से स्वस्थ रहना है तो इच्छा का नियन्त्रण करो, द्वेष को कम करो । राग और द्वेष-इन दोनों को नियंत्रित करना, अध्यात्म की साधना का सार है । ध्यान प्रिय-अप्रिय संवेदन की चेतना को कम करने के लिए, अपने ही बनाए इस मकड़जाल से निकलने के लिए है । ध्यान करनेवाले व्यक्ति को इस बात के लिए सजग रहना होता है-ध्यान करने से मेरी प्रिय संवेदना कम हुई या नहीं ? द्वेष कम हुआ या नहीं ? यह ध्यान की कसौटी है । ध्यान की साधना करते-करते यदि प्रियअप्रिय संवेदनों की अनुभूति कम होती जा रही है तो समझना चाहिए ध्यान सध रहा है । यदि ऐसा नहीं होता है तो मानना चाहिए-~-ध्यान की दिशा उद्घोषित नहीं हुई है। प्रश्न बुढ़िया का राग-द्वेष से बड़ी कोई समस्या नहीं है । एक राजा का विशाल प्रासाद था । उसी के निकट एक गरीब की झोंपड़ी थी । एक दिन राजा के मन में आया--- मेरे राजभवन के निकट यह टूटी हुई झोपड़ी बहुत बुरी लगती है । यह राजभवन की शोभा को बिगाड़ रहा है | राजा के मन में अप्रीति आई | उसने अधिकारियों को आदेश दिया—इस झोंपड़ी को हटा दो | राजा के अधिकारी गए, उसमें रहने वाली बुढ़िया से बोले-'इसे हम हटा रहे हैं, तुम दूसरी जगह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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