Book Title: Amantran Arogya ko
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 209
________________ मन का शरीर पर प्रभाव १९५ बड़ी विचित्र बात है | अपने होटल में दूसरों को खाना खिलाता है और स्वयं दूसरों के होटल में जाकर खाता है | ऐसे तत्त्व भी हैं, जो काम करते हैं और पीछे हट जाते हैं । वायु भी ऐसा ही तत्त्व है जो बहुत सारी समस्या पैदा कर परदे के पीछे चला जाता है। हमारे सामने आती है मन की चंचलता या स्थिरता । वायु समाने नहीं आती । जब भी मन की चंचलता का आभास हो, यह परीक्षण करा लेना चहिए-शरीर में वायु का प्रकोप कैसा है । कोरी चंचलता नहीं होती और अतिरिक्त चंचलता स्वाभाविक नहीं होती । यह बात सही है-मन है तो चंचलता होगी । चंचलता आवश्यक भी है जीवन के लिए किन्तु चंचलता ज्यादा बढ़ जाए तो वह समस्या बन जाती है । क्यों है चंचलता ? चंचलता का मुख्य करण है-वायु का प्रकोप । जिस व्यक्ति में चंचलता अधिक है, उसे सोचना चाहिए-इतनी चंचलता है, कहीं वायु का प्रकोप तो नहीं है ? यदि है तो क्यों है ? इसके कारण को भी खोजना चाहिए | कारण की खोज और उपाय की खोज-दोनों आवश्यक हैं । मन की पवित्रता के लिए, मन की मलिनता को दूर करने के लिए शरीर पर पूरा ध्यान देना होगा, शारीरिक तत्त्वों की मीमांसा करनी होगी । एक व्यक्ति ने निर्णय किया-मैं कचौड़ी नहीं खाऊंगा किन्तु वह जैसे ही कचौड़ी की दुकान के सामने से गुजरा, कचौड़ी की महक ने उसे विवश कर दिया । वह कचौड़ी खाने बैठ गया । उसका मित्र उसे कृत संकल्प की याद दिलाता है किन्तु मन के हाथों वह विवश बना हुआ है। वात-विकार के परिणाम मन की अस्थिरता और चंचलता व्यक्ति को अपने निश्चय से डिगा देती है । इसका एकमात्र कारण यह है कि व्यक्ति के शरीर में वायु की प्रकृति उग्र है । बहुत से लोग कहते हैं-स्मृति बहुत कमजोर है | बच्चों के बारे में भी ऐसी शिकायतें आती हैं । छोटे बच्चों की स्मृति कमजोर होनी ही नहीं चाहिए। अस्सी की अवस्था पार कर जाने के बाद भी स्मृति कमजोर नहीं होनी चहिए किन्तु वह कमजोर हो जाती है । इसका कारण भी वायुवृद्धि है | वातवृद्धि स्मृति दौर्बल्य का एक प्रमुख कारण है, कुछ लोग कहते हैं—डर बहुत लगता स्पात वह कमजोर हो जाता जाने के बाद भी स्मृति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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