Book Title: Amantran Arogya ko
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 219
________________ संतुलित आहार २०५ तपस्वियों से इसलिए लोग डरते थे कि कहीं क्रोध में आकर शाप न दे दें । रूखा भोजन इन्द्रिय-नियन्त्रण के लिए जरूरी है और चिकना भोजन इसलिए जरूरी है कि जिससे स्वाध्याय की शक्ति रहे, ध्यान करने की शक्ति रहे । यदि प्रणीत भोजन नहीं मिलेगा, स्निग्ध भोजन नहीं करेगा तो बुद्धि भी कमजोर बन जाएगी। मेधा-शक्ति को प्रबल करने के लिए स्निग्ध भोजन को आवश्यक बताया गया है । यदि ऐसा भोजन नहीं मिलेगा तो कोरे मूर्ख भट्टारक रह जाएंगे, ज्ञानध्यान कुछ भी नहीं हो पाएगा । ज्ञान-ध्यान की वृद्धि के लिए संतुलित भोजन आवश्यक है और इन्द्रिय संयम के लिए रूखा भोजन भी आवश्यक है । दोनों का संतुलन रहे तो समस्या पैदा नहीं होगी । यह संतुलित आहार का बहुत महत्त्वपूर्ण दृष्टिकोण है । मधुर रस आहार में ही नहीं जीवन के हर क्षेत्र में संतुलन आवश्यक है । समस्या यह है—एक सामान्य आदमी इतना ज्ञान कैसे करे | हर आदमी इतना कैसे जाने ? जान ले तो निर्णय करना कठिन हो जाए । जब हर चीज में कुछन-कुछ कमी मिलती है तो फिर खाए क्या ? इसका एक सीधा-सरल रास्ता निकाला गया-खाने के जितने द्रव्य हैं, उनके गुण-दोष जान लो । किन्तु इतने सारे द्रव्यों के गुण-दोष को जानना भी बड़ा कठिन काम है । दूसरा सरल उपाय बताया गया-रसों के आधार पर आहार का चयन करो । रसों का भी मन पर बड़ा प्रभाव पड़ता है । मीठा रस कफ की वृद्धि करता है और वात का शमन करता है । हम स्वयं यह अनुभव करते हैं-जिस दिन चीनी ज्यादा खाते हैं उस दिन शरीर भारी लगता है और दिमाग भी भारी लगता है | मधुर रस के उपयोग में संतुलन रखें, मीठी वस्तुएं खाने में कम-से-कम दो दिन का अन्तर रखें । आज मिठाई खाई है तो दो-दिन फिर कोई मीठी चीज न खाएं । इससे एक संतुलन बना रहेगा । एक साथ दो लाभ होंगे-त्याग का त्याग और स्वास्थ्य का स्वास्थ्य । यदि व्यक्ति इतना विवेक जगा लेता है, इन छोटी-छोटी बातों को स्वीकार कर लेता है तो वह मानसिक स्वास्थ्य का सार्थक उपाय कर लेता है । ये छोटी-छोटी बातें हैं किन्तु जीवन में बहुत उपयोगी हैं | स्वस्थ जीवन के आकांक्षी व्यक्ति को इतना संयम करना ही होता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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