Book Title: Amantran Arogya ko
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 211
________________ मन का शरीर पर प्रभाव १९७ शरीर में भी इस समस्या का समाधान खोजना चाहिए | शरीर की स्थिति क्या है और शरीर में ऐसा कौन-सा तत्त्व अधिक काम कर रहा है, जिसके कारण आचरण, व्यवहार या मानसिक चिन्तन पर इस प्रकर की प्रतिक्रियाएं हो रही हैं ? परिणाम पित्त का दूसरा महत्त्वपूर्ण तत्त्व है—पित्त । पित्त उत्तेजक है, गर्म है । स्वाभाविक ही है कि जिस व्यक्ति में क्रोध आए, उसमें पित्त की प्रधानता होगी । जब तक पित्त का शमन नहीं होता है, क्रोध का शमन होने में भी कठिनाई रहती है । प्रेक्षाध्यान में क्रोध के शमन हेत सफेद और नीले रंग का ध्यान कराया जाता है । ज्योतिकेन्द्र, आनंदकेन्द्र और विशुद्धिकेन्द्र पर नीले रंग का ध्यान, पूरे शरीर पर सफेद और नीले रंग का ध्यान कराया जाता है । इससे क्रोध की उत्तेजना कम हो जाती है, पित्त की उत्तेजना कम हो जती है । पित्त की उत्तेजना कम होती है तो मन अपने आप शांत हो जाता है | पित्त का मन पर जो परिणाम होता है वह है क्रोध का अतिरेक । इसीलिए समय का विवेक करना होता है । पित्त बढ़ने का जो समय होता है विशेषतः वह मध्याह्न का समय है | दोपहर के समय किसी व्यक्ति से कोई बहुत गहरी बात नहीं करनी चाहिए । ऐसे काम के लिए ऐसा समय चुनना चहिए, जिस समय पित्त शांत रहे । कर्म : उत्तेजना देने वाले तत्त्व पित्त का दूसरा परिणाम है-सहनशक्ति का अभाव । पित्त सहनशक्ति को क्षीण कर देता है । कोई भी घटना घटेगी तो पित्त प्रधान व्यक्ति एकदम अधीर बन जाएगा । यदि हम अपने आस-पास रहने वाले लोगों को ध्यान से देखें तो प्रकृति की यह भिन्नता हमें बहुतायत में देखने को मिलेगी । बहुत बार प्रश्न उठता है—यह अन्तर क्यों ? हम मानते हैं—यह कर्म का अन्तर है कर्म की बात बहुत आगे की बात है । कर्म मूल तत्त्व होता है किन्तु हमें उन तत्त्वों पर भी ध्यान देना चाहिए, जो कर्म को भी उत्तेजना देने वाले हैं । रे तत्त्व कर्म को उत्तेजना देते हैं, कर्म के प्रकम्पनों को बढ़ा देते हैं, फिर यह प्रकम्पन हमारे मन को प्रभावित करते हैं । इन सारे कारणों पर ध्यान देना आवश्यक है किन्तु इनका ज्ञान बहुत कम है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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