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१९६ आमंत्रण आरोग्य को
है । किसी घटना के होने पर डर लगना स्वाभाविक है किन्तु कुछ लोग अकारण ही डरे रहते हैं । प्रतिक्षण एक अज्ञात भय उनमें समाया रहता है । इस भय
और घबराहट के पीछे भी वायु का प्रभाव है | कुछ लोग सीमा से ज्यादा बोलते हैं, अनावश्यक ही बोलते रहते हैं | इस वाचालता का कारण भी वायु-विकार ही है । कुछ लोगों को हंसी-मजाक व्यंग्य में बड़ा रस मिलता है । यह भी वातप्रकृति की उग्रता का लक्षण है । ये सारे वात-विकार के लक्षण हैं । इन लक्षणो को जानकर हम मन के प्रभाव की मीमांसा करें । अगर हम मन को वैसा बनाना चाहते हैं, जिसमें वाचालता की स्थित न हो, चंचलता की स्थिति न हो, भय और घबराहट की स्थिति न हो तो हमें शरीर पर ध्यान देना होगा । केवल मन के द्वारा उन समस्याओं का समाधान पाना सम्भव नहीं होगा । यह समस्य का मूल कारण है । इस मूल कारण को पकड़े बिना समस्या का समाधान नहीं होगा । हम प्रायः मूल कारण को नही पकड़ पाते ।
मूल कारण को पकड़ें
एक चोर जेल से छूटा । बाहर निकलते ही गेट पर खड़े किसी व्यक्ति ने पूछा- 'तुम जेल से छूट गए । अब तुम पहला काम क्या करोगे ?'
चोर बोला---'सबसे पहले एक टार्च खरीदूंगा ।' 'क्यों ?'
'क्योंकि मैं पहले टार्च के अभाव में पकड़ा गया । उस समय चोरी करते वक्त अंधेरे में भूल से मेरा हाथ आलमारी में रखे नोटों की बजाए, रेडियो के स्विच पर पड़ गया था । वही मेरे पकड़े जाने का कारण बना ।'
इतने दिन जेल काटकर भी चोर ने यह नहीं सोचा-जेल में आने क कारण उसका चोरी करने का अपराध है । वह जेल में आने का मुख्य कारण अंधेरे को मान रहा है, टॉर्च के अभाव को मान रहा है । समस्या से मुक्ति पाने का उपाय हम नहीं खोजते बल्कि उससे बचने का प्रयत्न करते हैं, उससे बचने के बहाने खोजते हैं ।
जो व्यक्ति अपने मनोबल का विकास करना चाहता है, मन के आरोग्य का आकांक्षी है, उसे उसका समाधान केवल मन में ही नहीं, शरीर में भी खोजन होगा । हम किसी भी बात को ऐकांतिक रूप में न लें । मन की समस्या के समाधान के अनेक पहलू हो सकते हैं उनमें एक महत्त्वपूर्ण पहलू है शरीर
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