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आमंत्रण आरोग्य को
पनवाड़ी ने कहा—'मतलब बाद में पता चलेगा । पहले मैं जो कह रहा हूं वह करो ।'
नौकर असमंजस में पड़ गया किन्तु पनवाड़ी द्वारा पूरी गम्भीरता से कही गई बात उसने स्वीकर कर आधा सेर घी खरीदकर पी लिया । वह चूना लेकर राजा के चरणों में प्रस्तुत हुआ। राजा ने रोष में भरकर कहा-'अब तम मनमानी करने लगे हो । पान में चूने की मात्रा पर ध्यान नहीं देते । मेरे पान में इतना चूना मिला दिया कि मेरा मुंह कट गया ।' राजा ने मुंह खोलकर अत्यधिक चूने का परिणाम उसे दिखाया । राजा ने गुस्से में भरकर कहा-'इसका दंड हैयह सारा चूना तुम्हें इसी समय मेरे सामने खाना पड़ेगा ।' राजा के भय से नौकर ने चूने को पानी में घोला और पी गया । राजा ने सोचा-अब यह बचेगा नहीं । उसे चले जाने का आदेश दे दिया । नौकर चला गया । दूसरे दिन राजा के सामने वह फिर पान लेकर उपस्थित हुआ । राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ । राजा ने पूछा- 'तुम मरे नहीं ?'
नौकर बोला-'हजूर ! मरता तो यहां दरबार में कैसे उपस्थित होता ? राजा ने फिर पूछा-'आधा सेर चूना खाकर तुम बचे कैसे ?'
नौकर ने पनवाड़ी की सलाह पर घी पीने की पूरी बात राजा को बता दी।
राजा ने पनवाड़ी के बुद्धि-चातुर्य की दाद दी । समाधान है ज्ञान में
इस कहानी का निष्कर्ष है-समय रहते सावधान हो जाएं तो आदमी समस्या से बच सकता है । समस्या के साथ समाधान भी जुड़ा हुआ है । दोष चाहे वायु का हो, पित्त या कफ का | अगर हम उपाय जानते हैं तो कठिनाई भोगने से बच जाएंगे | उपाय नहीं जानते हैं तो अकारण ही कठिनाइयों से जूझना पड़ेगा । यह एक तथ्य है—इस दुनिया में उतने कष्ट नहीं है, जितना आदमी भोगता है । वह भोगता है अपने अज्ञान के कारण । ज्ञान है तो काफी समाधान है । हमारे शरीर में ही तमाम समाधान है | अगर ज्ञान नहीं है तो बाहर की दुनिया में भी समाधान नहीं है | हमारे शरीर में समाधान है, प्रकृति में समाधान है, वातावरण में समाधान है-वनस्पति जगत में समाधान है, आहार में समाधान है । समाधान भरे पड़े हैं किन्तु उस व्यक्ति के लिए कोई समाधान
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