Book Title: Amantran Arogya ko
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 208
________________ १९४ आमंत्रण आरोग्य को जोड़कर नहीं देखेंगे तो हमें समाधान नहीं मिलेगा । हम शरीर और मन के सम्बन्ध में जानें । शरीर मन को प्रभावित करता है और मन शरीर को प्रभावित करता है | शरीर में होने वाले विकार मन को बहुत प्रभावित करते हैं । बाहर से हमें उनका पता नहीं चलता कि भीतर क्या हो रहा है, किन्तु भीतर में एक प्रक्रिया चलती रहती है और मन की अवस्थाएं बदलती चली जाती हैं । आयुर्वेद में इस विषय पर बहुत सूक्ष्मता से चिन्तन किया गया है, मीमांसा की गई है । कहा गया-शरीर में तीन दोषों का साम्य होता है तो आदमी स्वस्थ रहता है और वात, पित्त और कफ- इन तीनों में कोई अव्यवस्था आती है तो हमारे मन की स्थिति गड़बड़ा जाती है, हमारा व्यवहार भी गड़बड़ा जाता है । संचालित करने वाला तत्त्व सबसे पहले हम वायु को लें । वायु सारी प्रवृत्तियों को संचालित करने वाला तत्त्व है | हम किसी से पूछते हैं कि घड़ी में कितने बजे हैं | उत्तर मिलता है.---'पांच !' प्रश्न होगा-'कैसे जाना ?' व्यक्ति कहेगा-'आंख से देख रहा हूं।' यह बात भी ठीक है किन्तु और गहरे में जाएं तो पता चलता है-वायु साथ में जुड़ती है तो आंख से दिखाई देता है । वायु साथ में न जुड़ें तो आंख से दिखाई नहीं देता । शरीर में जो कुछ है, उसे संचालित करनेवाला तत्त्व है वायु | इससे वायु का महत्त्व स्वयं सिद्ध है, किन्तु शरीर में जब वायु तत्त्व की वृद्धि हो जाती है, उसका अतिरेक हो जाता है तो समस्याएं पैदा होती हैं। चंचलता भी मन की समस्या है और इसे पैदा करने वाला तत्त्व है वायु । मन को चंचल बनाकर यह तत्त्व पीछे हट जाता है । दूसरों के लिए समस्या पैदा कर पीछे हट जाना कुछ लोगों की प्रवृत्ति होती है । विचित्र बात एक आदमी किसी होटल में खाना खाने गया । खाना बहुत खराब था। बैरे को बुलाकर कहा-'कहां है तुम्हारा मैनेजर ? इतना रद्दी खाना खिलाया जाता है ?' बैरा बोला-'महाशय ! मैनेजर साहब सामने वाले होटल में खाना खाने गए हैं ।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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