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१९२ आमंत्रण आरोग्य को
प्रयोग कर मेरे पास आए । उन्होंने भावपूर्ण स्वर में कहा-'आज मैं दर्शनकेन्द्र पर थोड़ी देर अपने ध्यान को केन्द्रित कर सका । उस समय मुझे जो आनन्द मिला, उसे मैं बता नहीं सकता । हम लोग कल्पना भी नहीं कर सकते कि हमारे भीतर इतना सुख और शांति है ।'
• अगर हम मन के मर्म को समझ जाएं और मन को साध लें तो शायद दुनिया के सारे पदार्थों से जितना सुख नहीं मिलता, उतना सुख मन की एकाग्रता से मिल सकता है । यह केवल पढ़ी-पढ़ाई बात नहीं, अनुभव सिद्ध बात है |
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