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तन, मन और आत्मा का सामजस्य १९१
मन की शक्तियां
दूसरा तत्त्व है मन । हम लोग सामान्यतः यही समझते हैं कि मन बड़ा चंचल है । हमारे संतों ने भी यही लिखा
मन लोभी मन लालची, मन चंचल मन चोर ।
मन के मते न चालिए, पलक पलक मन और ।। मैं मानता हूं कि मन चंचल है, पर क्या मन चंचल ही है ? मन में अपार शक्तियां हैं । शक्ति का स्रोत और भण्डार है मन । हम मन की शक्ति को नहीं पहचानेंगे, केवल मन की चंचलता को पकड़ेंगे तो हमारा विकास नहीं हो सकेगा । एकाग्रता मन की बहुत बड़ी शक्ति है । संकल्प मन की बहुत बड़ी शक्ति है । अवधारण करना, निश्चय करना, संश्लेषण करना, विश्लेषण करनाये सब मन की शक्तियां हैं। इन शक्तियों को नहीं पहचानेंगे तो मिलेगा क्या?
दोहन करना सीखें
मन ऐसा तत्त्व है, जिससे बड़ी-बड़ी शक्तियां भी मिलती हैं, और बुराइयां भी मिलती हैं । हम इस बात पर ध्यान दें जिससे मन की शक्तियों का सही उपयोग कर सकें । गाय को दुहेंगे तो दूध मिलेगा अन्यथा मूत्र और गोबर ही हाथ आएगा । यदि मन का दोहन करना सीख जाएं तो अनेक शक्तियों का जागरण होगा । यदि दोहन न कर पाएं तो अनेक विपदाओं को झेलना भी हमारे हिस्से में आ सकता है । इसलिए गहराई से इस बात को समझना जरूरी है कि मन क्या है ? हम इस बात को जानते हैं-आत्मा को समझने के लिए मन के पार जाना होगा, मनोतीत या मन से परे बनने होगा, मन को रोकना होगा किन्तु हम मन को रोकने से पहले उसे एकाग्र करना सीखें । मन में कितना ही सुख देने की क्षमता है | आदमी कल्पना में भी सुख पाता है तो मन की वास्तविकता को जान लेने के बाद से कितना सुख मिलेगा, यह सोचा जा सकता है । कल्पनातीत सुख
दिल्ली में (सन् १९८७) प्रेक्षाध्यान का शिविर चल रहा था । मुख्यतः विदेशी लोग उसमें भाग ले रहे थे । एक व्यक्ति थे हवाई यूनिवर्सिटी में पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर ग्लेनपेज । वे एक बार रात में चैतन्य केन्द्रों पर ध्यान का
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