Book Title: Amantran Arogya ko
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 204
________________ १९० आमंत्रण आरोग्य को राजा भी विचार में पड़ गया । उसने सोचा-मंत्री बात तो ठीक कह रहा है। वास्तव में मैंने गलती कर दी । यह एक तथ्य है-राजा या इस तरह के बड़े लोग अपनी गलती को सहज ही स्वीकार नहीं करते । राजा बोला'मंत्री जी ! ठीक है, तुमने मेरा नाम मूल् की सूची में रख दिया पर कल्पना करो-कल यदि वह घोड़ों को लेकर आ जाएगा तो फिर क्या होगा ?' मंत्री बोला-'कुछ विशेष नहीं होगा । बस, केवल मूों का नाम बदल दूंगा। आपकी जगह उसका नाम लिख दूंगा । पांच लाख मुद्राएं सहज ही प्राप्त कर जो वापस आ जाए, वह भी मूर्ख है ।' मानें नहीं, जानें जो व्यक्ति बिना सोचे-विचारे कोई काम करता है, आचरण या व्यवहार करता है, वह समझदार नहीं माना जाता । क्या हमारे लिए यह चिन्तनीय नहीं है कि हम जो कुछ कर रहे हैं वह चिन्तनपूर्वक कर रहे हैं या नहीं । हम धर्म का संदर्भ लें । आत्मा की बात, आत्मा के साक्षात्कार की बात, परमात्मा की बात हम लोग करते हैं, क्या सोच-समझकर करते हैं या मात्र दुहाई ही देते जा रहे हैं ? जानने का प्रयत्न कर रहे हैं या केवल मानते ही चले जा रहे हैं ? आत्मा के बारे में जो कुछ सुना, मान लिया, क्या कभी जानने का प्रयत्न किया ? जब तक जाना नहीं जाता, तब तक सचाई सामने नहीं आती । मानने की बात ही रह जाती है । जो शरीर को भी नहीं जानता, वह मन को कैसे जान पाएगा । जो मन को नहीं जानता, वह आत्मा या परमात्मा को कैसे जान पाएगा ? आलंबन है शरीर हर आस्तिक व्यक्ति आत्मा-परमात्मा की दुहाई दे रहा है किन्तु जिस शरीर में वह जी रहा है, उसको ही नहीं जान पा रहा है । जिस घर में रह रहा है, उसे ही नहीं जानता तो घर की संपदा को, घर में पड़े निधान को कैसे जानेगा? उसे जानने का उसके पास कोई साधन ही नहीं है, उपाय ही नहीं है | आत्मसाक्षात्कार के लिए सबसे पहले शरीर को जानना होगा । शरीर क्या है ? क्या शरीर केवल भोग करने का साधन है ? यदि इतना ही है तो कुछ भी नहीं। शरीर आत्मा तक, परमात्मा तक पहुंचने का बहुत बड़ा साधन है, आलम्बन है, इस बात को समझ कर ही हम आत्म-साक्षात्कार की दिशा में आगे बढ़ सकते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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