________________
क्या मानसिक स्वास्थ्य चाहते हैं ? १६९
६. आत्म-निरीक्षण ७. जीवन-शैली में बदलाव
१. प्राणशक्ति का सन्तुलन
जीवन का अर्थ है—प्राण | प्राण का अर्थ है—जीवन । हम प्राणी कहलाते हैं । जिसके पास प्राण की शक्ति है, वह प्राणी है | आदमी मरता है तो हम कहते हैं-श्वास बन्द हो गया, मर गया । हार्ट बन्द हो गया, मर गया । नाड़ी की गति बन्द हो गई, मर गया । यह सही बात नहीं है । यह एक परीक्षण है, इसे क्लिनिकल जांच कहा जा सकता है। किन्तु यह पूरा सही नहीं है । न जाने कितने लोग जिन्दा जलाए जाते हैं । बहुत सारे लोग मरने से पहले ही जला दिए जाते हैं । उन्हें सतही लक्षणों के आधार पर मृत मान लिया जाता है । हृदय का धड़कना, नाड़ी का चलना, श्वास का आना-ये सब ऊपरी लक्षण हैं । जब तक भीतर में प्राण शक्ति शेष है, तब तक आदमी मरता नहीं है। अभी हाल में ही एक घटना प्रकाश में आई है । उससे इस सचाई की पुष्टि हुई है । एक आदमी गंभीर रूप से बीमार हो गया । बड़े-बड़े डॉक्टर उपचार में लगे थे । क्लिनिकल जांच और परीक्षण कर उसे मृत घोषित कर दिया । चार-पांच घंटे बाद अचानक उसके हार्ट ने फिर काम करना शुरू कर दिया । सारे डॉक्टर आश्चर्यचकित रह गए। उन्होंने फिर से प्रयत्न शुरू किए । दवाइयां, इन्जेक्शन आदि दिए जाने लगे । कई घंटों तक वह जिया । दस-पन्द्रह घंटों के बाद वह व्यक्ति हार्ट अटैक से मरा किन्तु मूल में वह मरा नहीं था । जीवन का आधार
हिन्दुस्तान की पुरानी पद्धति में ऐसे प्रसंग पर ओझा लोगों को बुलाया जाता था । ओझा आता । एकान्त में मृत व्यक्ति पर चादर डाल देता | चादर के भीतर हाथ डालकर पूरे शरीर पर हाथ फेरता । वह मालूम कर लेताकहीं प्राण अटका हुआ तो नहीं है । उस बिन्दु को पकड़ने की कला उसे ज्ञात होती थी । यदि प्राण कहीं अटका हुआ होता तो वह उसे पुनः सक्रिय बना देता, आदमी जिन्दा हो जाता । कभी-कभी ऐसी घटनाएं घटती हैं, मरा हुआ आदमी पुनः जिन्दा हो जाता है । उसे देखकर कुछ लोग डरकर भागने लगते हैं । वे मानते हैं—भूत हो गया । वस्तुतः वह मरा नहीं था, मरा हुआ जान
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org