Book Title: Amantran Arogya ko
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 185
________________ क्या मानसिक स्वास्थ्य चाहते हैं ? लेना सीखें । यदि छोटा श्वास लेते हैं, टूटता हुआ श्वास लेते हैं तो प्राणशक्ति का व्यय बहुत ज्यादा होगा । हम पूरा और गहरा श्वास लें । पूर्ण श्वास का लक्षण है— सांस लेते समय पेट फूले और छोड़ते समय पेट सिकुड़े । श्वास लेते समय केवल छाती फूले तो समझना चाहिए कि श्वास लेने का तरीका सही नहीं है, गलत है । कुछ योगी या व्यायाम कराने वाले प्रशिक्षक बताते हैंश्वास लो तो सीना एकदम फूल जाए । यह बात सही नहीं है । वस्तुतः छाती फूलनी चाहिए श्वास को रेचन करते समय । पेट सिकुड़ेगा तो छाती फूलेगी । श्वास लेते समय पेट फूलना चाहिए, छाती सिकुड़नी चाहिए । यह सही श्वास की क्रिया है । इसे ऑकल्ट साइंस में डायाफ्रामेटिक ब्रीदिंग कहते हैं । ३. आहार का संयम मानसिक स्वास्थ्य का तीसरा सूत्र है - आहार संयम । आहार का संयम करना एक जटिल समस्या है । आदमी आहार पर नियन्त्रण रख सके, यह बहुत बड़ी बात है, किन्तु नियन्त्रण नहीं हो पाता । जब कोई मनोगत वस्तु सामने आती है, व्यक्ति सारे नियम और सिद्धान्त भूल जाता है । तपस्या करना, उपवास करना कठिन है । वह भी सरल हो सकता है । किन्तु खाए और आहार का संयम करे, यह शायद ज्यादा कठिन है । मैंने ऐसे लोगों को देखा है, जो मासखमण की तपस्या कर लेते हैं किन्तु जहां खाने का प्रसंग आता है, वहां संयम नहीं करते । बहुत जटिल प्रश्न है आहार संयम का । आहार संयम यानि अधिक न खाना । खाने में प्राणशक्ति खर्च होती है । उत्सर्ग करने में और अधिक प्राणशक्ति खर्च होती है। जो मानसिक स्वास्थ्य चाहते हैं, उसके लिए यह अनिवार्य शर्त है कि वे आहार पर ध्यान दें । १७१ चार प्रश्न क्या खाएं ? कैसे खाएं ? कितनी बार खाएं ? कब खाएं ? इन चार प्रश्नों पर गंभीर चिंतन करना होगा । आम आदमी की समस्या यह है कि वह काम से फुरसत मिलने के बाद रात को दस - ग्यारह बजे खाता है । रात को खाना खाने का समय नहीं है । यह पाचन तन्त्र के लिए बिल्कुल उल्टा समय है । जब तक सूर्य की किरणें मिलती रहें तब तक खाने का समय है । सूर्य न उगे, तब तक खाने का समय नहीं । सूर्य अस्त हो जाए, तब खाने का समय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236