Book Title: Amantran Arogya ko
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 186
________________ १७२ आमंत्रण आरोग्य को नहीं । हमारे जितने पाचन तन्त्र के अवयव हैं, वे सूर्य के प्रकाश में सक्रिय रहते हैं । सूर्य का प्रकाश न मिलने पर वे निष्क्रिय बन जाते हैं । पाचक रसों का स्राव भी ठीक नहीं होता । हम इसे धर्म का सिद्धान्त माने या न मानें किन्तु यह स्वास्थ्य का सिद्धान्त है । रात्रि-भोजन स्वास्थ्य के अनुकूल नहीं है | खाते ही लेट जाना, नींद में चले जाना भी स्वास्थ्य के प्रतिकूल हैं । जब हम नींद लेते हैं, आमाशय और पक्वाशय काम करना बंद कर देते हैं । पाचन-क्रिया करने वाले बहुत सारे अवयव भी ऐसी स्थिति में अपना काम करना बन्द कर देते हैं । वे अन्न को पचाएंगे नहीं, वह जहां पड़ा है, वहीं पड़ा रहेगा, सड़ेगा | यह मान्यता आज के विज्ञान की है । पाचक रसों के बारे में आयुर्वेद का और आज के मेडिकल साइंस का कथन है-नींद की स्थिति में पाचन-तन्त्र की क्रिया बन्द हो जाती है या मन्द पड़ जाती है इसलिए आहार के बारे में कुछ सावधानियां जरूरी हैं । नया प्रयोग आहार के असंयम से शरीर में विष जमा होता है । हालांकि भोजन के बाद थोड़ा बहुत विष जमा होता है पर ज्यादा खा लिया जाए तो अधिक विष जमा हो जाता है । कभी जोधपुर से एक डॉक्टर आए । उनका नाम है नरेश भंडारी । उन्होंने कहा-आजकल हम लोग भी एक प्रयोग करते है । रोगियों से कहते हैं | खाओ, कितनी ही बार खाओ, कितनी ही चीजें खाओ । बस, एक कांच की नली या शीशी में डालते जाओ । दिन भर जो कुछ भी खाओ, चाय, बिस्कुट रोटी उसका थोड़ा-थोड़ा अंश उसमें डालते जाओ । सुबह उसे ध्यान से देखो | अगर उसमें सड़ांध नहीं है तो तुम्हारे पेट में भी सड़ांध नहीं है । जब सड़ांध या बदबू पैदा होगी तो वह निश्चय ही ऊपर जाएगी, दिमाग को खराब करेगी । आहार के साथ स्वास्थ्य का कितना सम्बन्ध है, किन्तु इस पर बहुत कम ध्यान दिया जाता है । यदि मन को स्वस्थ रखना है तो वह केवल कल्पना से नहीं होगा, इसके लिए आहार-संयम के प्रति भी अधिक जागरूक होना होगा । ४. क्रोध का उपशमन मानसिक स्वास्थ्य का चौथा सूत्र है-क्रोध का उपशमन | यह बिलकुल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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