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१८० आमंत्रण आरोग्य को
जाता है । क्या उसमें समझदारी नहीं होती ? जिसको समझदार कहा जाता है, उसमें मुर्खता नहीं होती? क्या ऐसा कोई समझदार नहीं है, जिसमें मुर्खता का अंश न हो ? क्या ऐसा कोई मूर्ख नहीं है, जिसमें समझदारी का अंश न हो । हम जिसे पागल कहते हैं, कभी-कभी वह पागल आदमी भी बड़ी समझदारी की बातें करता है, और कभी-कभी समझदार आदमी भी पागलपन की बात कर लेता है | नामकरण होता है केवल प्रधानता के कारण ।
नाम निरपेक्ष सत्य नहीं है
एक व्यक्ति मूर्खतापूर्ण कार्य अधिक करता था इसलिए सब उसे मूर्ख कहते थे । लोगों से उसने कहा—'भाई ! हमें ऐसा क्यों कहते हो?' लोगों ने कहा- 'तुम्हारा लक्षण ही ऐसा है, क्या करें?' उसने सोचा-यहां रहना ठीक नहीं है । यहां सब मूर्ख ही कहेंगे, इसलिए परदेश चला जाऊं । वह वहां से बहुत दूर चला गया । किसी गांव में पहुंचा । उसे प्यास लगी थी। उसने देखा-- कएं के पास नल लगा हुआ है । नल में टोंटियां लगी हुई हैं । वह एक टोंटी के पास जाकर बैठ गया । टोंटी को खोला और पानी पी लिया । पानी पीने के बाद वह सिर हिलाने लगा । वह सिर हिलाता जा रहा है और पानी गिरता जा रहा है । दूर से एक आदमी यह तमाशा देख रहा था । उसने कहा'अरे, मूर्ख ! यह क्या कर रहा है?' उसने चौंककर उस व्यक्ति को देखा और आश्चर्य से पूछा-'तुमने मेरा नाम कैसे जान लिया ?' व्यक्ति बोला-'तेरे लक्षणों से पता चल रहा है कि तू मूर्ख है ।'
नाम कोई निरपेक्ष सत्य नहीं है | परम सत्य भी नहीं है । वह एक सापेक्ष सत्य है, सत्य का एक छोटा-सा अंश है | उसी के आधार पर सारा नामकरण होता है । प्रश्न है लक्षण का
प्रश्न है-सात्त्विकता का लक्षण क्या है ? राजस और तामस का लक्षण क्या है ? किन लक्षणों, आचरणों और व्यवहारों के आधार पर ये नामकरण किए गए हैं ? आयुर्वेद में इनकी पूरी मीमांसा और विवेचन किया गया है । जिसमें ये आचरण और व्यवहार होते हैं, उसमें सत्त्वगुण की प्रधानता है । इसी प्रकार राजसिक और तामसिक गुण की प्रधानता का भी पता चलता है । मन
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