Book Title: Amantran Arogya ko
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh
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३८. व्यक्तित्व के तीन प्रकार
यह सावन का महीना है । वर्षा ऋतु है और गर्मी भी है । क्या सदा सावन का ही महीना रहता है ? इससे पहले आषाढ़ का महीना था, ग्रीष्म ऋतु थी। उससे पहले बसंत ऋतु थी । ऋतु का चक्र बदलता रहता है । समय बदलता रहता है, परिस्थितियां बदलती रहती हैं । प्रश्न है-केवल ऋतुचक्र ही बदलता है या मनुष्य भी बदलता है ? इस संसार में कोई भी तत्त्व ऐसा नहीं है जिसमें परिवर्तन न होता हो । प्रत्येक तत्त्व में परिवर्तन होता है । मनुष्य भी सदा एकरूप नहीं रहता । वह जन्मता है, बच्चा होता है, किशोर बनता है, युवा बनता है, प्रौढ़ बनता है, बूढ़ा बनता है। नये-नये रूपों में ढलता ही चला जाता है । यह एक स्थूल बात है । एक दिन में आदमी कितना बदलता है, चौबीस घंटो में कितना बदलता है, इस पर हम विचार करें तो पाएंगे—प्रातःकाल जो आदमी था बारह बजे वह नहीं रहा । जो बारह बजे था, तीन बजे वह नहीं रहा और जो तीन बजे है, छह बजे वह नहीं रहेगा । यह स्थूल बात है । प्रति सेकेंड आदमी बदलता चला जाता है और इस बदलाव का मुख्य हेतु बनता है मन । मन की स्थिति बदलती जाती है तो आदमी भी बदलता चला जाता है । वह एक जैसा लगता ही नहीं है ।
परिवर्तन का नियम
एक प्रौढ़ महिला प्रसंगवश अपने छोटे बच्चे को अपनी शादी का एलबम दिखा रही थी । उसमें एक चित्र में उसके साथ एक युवक खड़ा था ।
बच्चे ने कहा-'मम्मी ! यह कौन है ।' महिला ने कहा-'तेरा पापा है ।'
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