________________
अपना नियंत्रण अपने द्वारा १६३
खतरनाक होता है जिसका अपने मन का तूफान शांत नहीं । यह बात समझ में आ जाए कि मन में अपने-आप पर नियंत्रण करने की क्षमता है तो मन का तुफान बंद हो सकता है । पर प्रश्न है कैसे होगा ? दो काम कैसे होंगे? मन इधर दौड़ा जा रहा है, उधर नियंत्रण भी कर रहा है । ये दोनों बातें कैसे होंगी?
नियंत्रण का सूत्र
एक हमारी शक्ति है धृति । उसके द्वारा मन का नियंत्रण होता है | मन प्रवृत्ति के द्वारा चंचलता करता है और धृत्ति के द्वारा नियंत्रण करता है । दशवैकालिक सूत्र के दूसरे अध्ययन में एक सुन्दर विवेचन है । प्रश्न हुआ कि श्रामण्य किसके होता है ? मुनि कौन हो सकता है ? साधुत्व किसके टिकता है ? उसमें बताया गया-जस्स धिईतस्स सामण्णं-जिसमें धृति है, उसके श्रामण्य है । जिसमें धृति नहीं, उसके श्रामण्य नहीं । धृति क्या है ? विषयों के प्राप्त होने पर भी इन्द्रियों का निग्रह करना, इसी का नाम है धृति । तीर्थंकर या वीतराग में धृति होती है, यह तो स्वाभाविक है किन्तु जो अवीतराग हैं उनके लिए भी धृति का निरूपण किया गया है । कीर्ति, मति, धृति-ये उनकी विशेषताएं होती हैं । धृति के द्वारा मन का नियंत्रण हो जाता है । इसका अर्थ है—एक क्रियात्मक शक्ति के द्वारा मन की चंचलता होती है और धृति शक्ति के द्वारा उस पर नियंत्रण होता है | धृति का प्रयोग करना तभी संभव है जब यह समझ में आ जाए—धृति एक ऐसी शक्ति है, जिसका अभ्यास किया जा सकता है, जिसके मन अपने-आप पर नियंत्रण कर सकता है । इसके लिए अहंकार का विलय भी आवश्यक है । विद्वत्ता का अहंकार, पैसे का अहंकार, पद का अहंकार, सत्ता का अहंकार, जाति का अहंकार, व्यापार का अहंकार-जब तक ये अहंकार रहेंगे तब तक नियंत्रण की शक्ति नहीं आएगी, धृति का विकास नहीं होगा। बाधक है अहंकार
___ कहा जाता है, डाकू और साधू-दोनों को यमदूत ले गये । दोनों को यमदूतों ने यमराज के सामने प्रस्तुत किया। यमराज ने कहा-'अपना परिचय दो ।' डाकू खड़ा हुआ, बोला-'महाराज मैं डाकू हूं । जीवनभर डकैती की, लोगों को लूटा, धमकाया, बुरा काम किया अब मुझे ऐसा दण्ड दो कि मैं प्रायश्चित
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org