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१६० आमंत्रण आरोग्य को
अपने विषय में प्रवृत्त हो जाती हैं । यह हमारे ज्ञान की एक लब्धि है । अब इन्द्रियों का नियंत्रण करना है । कौन करेगा? अभी मुझे नहीं देखना है | ध्यान करता हूं, देखना नहीं है, आंख बंद कर ली | क्या आंख बंद आंख की प्रेरणा से हई या किसी दूसरी प्रेरणा से हुई या मन की प्रेरणा से हुई है ? मन की प्रेरणा मिली, चिन्तन आया-ध्यान करना है, कायोत्सर्ग की मुद्रा में बैठ गए
और आंख बंद कर ली । इसका अर्थ है-इन्द्रियों का संचालन मन के द्वारा होता है | मन चाहता है तो वह इन्द्रियों को प्रेरित कर देता है, मन चाहता है तो उन्हें रोक देता है । यह प्रवृत्ति और निवृत्ति, संचालन और निरोधदोनों काम मन के नियंत्रण में है। इन्द्रियों का सारा नियंत्रण है मन के हाथ
में ।
मन का काम
ज्ञान का दूसरा साधन है मन । इन्द्रियों का एक-एक विषय निश्चित है। सामने केला पड़ा है | आंख ने देख लिया । आंख का काम पूरा हो गया । केला अच्छा है या बुरा, उसे खाना हितकर है या अहितकर, यह विचारणा करना मन का काम है । इन्द्रिय का काम है-विषय का ग्रहण और मन का काम है-गुण और दोष, हित और अहित की विचारणा करना । बुद्धि का काम है निश्चित करना, निर्णय करना । सामान्यतः हमारे जीवन के व्यवहार में इन्द्रिय
और मन-इन दोनों का काम पड़ता है | दोनों से सारा व्यवहार चलता है। हम ज्यादा जीते हैं इन्द्रिय-चेतना के स्तर पर और मन की चेतना के स्तर पर ।
जटिल प्रश्न
मन के कई कार्य हैं-चिन्तन, विचार, और संकल्प । चरक ने मन के पांच काम बताए हैं-चिन्तन करना, विचार करना, ऊह करना (संभावना व तर्क करना), भावना करना और संकल्प करना । अभी सोचना है या नहीं, अभी तर्क करना है या नहीं, यह कौन कर्ता है ? आयुर्वेद में इस प्रश्न पर विचार किया गया कि मन पर नियंत्रण कौन कर रहा है ? कौन मन को संचालित कर रहा है ? इसके उत्तर में कहा गया मन का नियंत्रण करता है स्वयं मन। अपना नियंत्रण अपने द्वारा । तर्कशास्त्र में, न्यायशास्त्र में ऐसा उल्लेख मिलता है-सुशिक्षितोऽपि नटवटुः न स्वस्कन्धमधिरोढं पटुः--चाहे नटपुत्र कितना ही
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