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१३० आमंत्रण आरोग्य को
होता है- आहार से, चेष्टा से और योग से । इन तीनों के द्वारा मनोबल में अन्तर आता है । एक प्रकार के आहार से मनोबल बढ़ता है और दूसरे प्रकार के आहार से वह घटता है ।
आहार तीन प्रकार का है— सात्विक, राजसिक और तामसिक । सात्विक आहार मनोबल को बढ़ाता है । राजसिक आहार से मनोबलमध्यम बना रहता है । तामसिक आहार से मनोबल अल्प हो जाता है | आहार के साथ मनोबल का गहरा सम्बन्ध है | मांसाहार करने वालों का मनोबल अधिक नहीं होता । जितनी सहनशक्ति शाकाहारी में होती है, उतनी मांसाहारी में नहीं होती । जितने भी बड़े-बड़े संत महात्मा हुए हैं, वे सब शाकाहारी हुए हैं, कंद-मूल को खाने वाले हुए हैं । उन्होंने जितने कष्ट, जितनी विपदाएं सहन की हैं उतनी मांसाहार करने वाले कभी नहीं सह सकते । आहार और मनोवल
जो व्यक्ति राजसिक आहार करते हैं, मिर्च-मसाले अधिक खाते हैं, उनमें भी मनोबल अधिक नहीं होता । मसाले केवल स्वाद के लिए खाए जाते हैं। उनसे मनोबल घटता है | राजसिक आहार राजसिकता को बढ़ाता है, आवेश और आवेग को पैदा करता है । अधिक गर्म मसाले खाना अनेक दोषों को पैदा करता है । इससे मनोबल में हानि होती है । यदि हम अनुपात निकालें तो यह समीकरण होगा सात्विक आहार करने वाले व्यक्ति में साठ प्रतिशत मनोबल होता है तो राजसिक आहार करने वाले में तीस प्रतिशत और तामसिक आहार करने वाले में केवल दस प्रतिशत मनोबल होगा । मनोबल की मात्रा में इतना भारी अन्तर आ जाता है।
आहार एक सशक्त उपाय है मनोवल को बढ़ाने का । इसलिए जितने भी आध्यात्मिक योगी हुए हैं, उन्होंने सबसे पहले आहार पर ध्यान दिया । वे जानते थे कि मनोवल के बढ़ाव-घटाव में आहार का प्रमुख हाथ रहता है और मनोबल के बिना अध्यात्म की साधना नहीं की जा सकती। आहार का ठीक चनाव किरा बिना मनोवल का विकास नहीं किया जा सकता । जन्म से ही जिनका मनोवल प्रबल नहीं है, वे आहार के द्वारा अपने मनोबल को बढ़ा सकते हैं, उसका विकास कर सकते हैं ।
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