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आमंत्रण आरोग्य को
होता है, वह सचाई से दूर चला जाता है, अप्रमत्त नहीं रह जाता, प्रमाद में चला जाता है । जहां-जहां प्रमाद, वहां-वहां भय और जहां-जहां भय वहां-वहां मानसिक स्वास्थ्य की गिरावट । आज मानसिक दृष्टि से पूर्ण स्वस्थ व्यक्ति किसे कहा जाए ? यह एक बड़ा प्रश्न है ।
स्वस्थ है वीतराग
मानसिक दृष्टि से स्वस्थ आदमी को खोजना बड़ा मुश्किल है । अध्यात्म के क्षेत्र में एक व्यक्ति का ऐसा चरित्र मिलता है, जिसे मन की दृष्टि से पूर्ण स्वस्थ कहा जा सकता है | वह है वीतराग या अप्रमत्त । साधना की भूमिकाओं में पांचवीं भूमिका गृहस्थ श्रावक की होती है । छठी भूमिका है मुनि की । अप्रमत्त मुनि को मानसिक दृष्टि से पूर्ण स्वस्थ कहा जा सकता है किन्तु उसके साथ वह समस्या जुड़ी हुई है कि अप्रमत्त अवस्था ज्यादा समय तक टिकती नहीं है । छठी भूमिका वाला मुनि प्रमत्त भूमिका में जीता है, वह कभी-कभी अप्रमत्त भूमिका में जाता है किन्तु अन्तर मुहुर्त के भीतर-भीतर फिर प्रमत्त की भूमिका में आ जाता है । वह अधिक समय तक रह नहीं पाता, क्योंकि उसमें प्रमाद है । यह भूमिका बदलती रहती है । मानसिक दृष्टि से पूर्ण स्वस्थ रहने के लिए अप्रमाद की भूमिका में आना आवश्यक है । अप्रमत्त भूमिका मानसिक दृष्टि से पूर्ण स्वास्थ्य की भूमिका है । वीतराग की भूमिका पूर्ण अप्रमत्त अवस्था की भूमिका है। शेष अल्पकालिक अप्रमत्त अवस्था की भूमिकाएं हैं। बिना वीतराग की भूमिका के किसी को पूर्ण स्वस्थ कह पाना कठिन होता है | मुनि को भी पूर्ण स्वस्थ नहीं कहा जा सकता | उसके मन में भी समय-समय पर जाने कितने मानस दोष आ जाते हैं । मुनि कभी लोभ में, कभी क्रोध में, कभी अहंकार में चले जाते हैं । ये विकल्प आते रहते हैं | जब मुनि की यह स्थिति है तो एक गृहस्थ के बारे में क्या कहा जा सकता है ? धर्म का कार्य
आयुर्वेद के आचार्यों ने मानस-दोषों की जटिलता पर काफी विचार किया और उनकी चिकित्सा भी बतलायी । होम्योपैथी में भी मानस-दोषों की चिकित्सा मिलती है । एक आदमी को अधिक क्रोध आता है तो क्या दवा देनी चाहिए | ज्यादा भय या लोभ है तो कौन-सी दवा देनी चाहिए । होम्योपैथी में इन सारे
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