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३३. मन के लिए कितना समय ?
महत्त्वपूर्ण प्रश्न
शरीर की अपेक्षा मन शक्तिशाली और उपयोगी है, पर प्रश्न है—शरीर के लिए कितना समय लगता है और मन के लिए कितना समय लगता है ? शरीर से मन महत्त्वपूर्ण है, पर क्या उसके लिए हम समय का नियोजन करते हैं ? शरीर को पोषण देने के लिए चार-पांच बार खाया जाता है, भोजन का ध्यान रखा जाता है, पौष्टिक और विटामिनों से युक्त आहार प्राप्त हो, ऐसा प्रयल होता है। शरीर को स्नेह, कार्बोहाइड्रेड और खनिज मिले, यह ध्यान रहता है । ऋतु के अनुसार भोजन में परिर्वतन भी किया जाता है। हम शरीर को पुष्ट रखना चाहते हैं, कमजोर करना नहीं चाहते । हम ये सारे प्रयत्न शरीर के लिए करते हैं ।
प्रश्न है----क्या चेतना, मन और प्राण शक्ति के विषय में भी कभी ध्यान देते हैं ? क्या कभी सोचते हैं कि मन को उचित पोषण मिल रहा है या नहीं? पोषण के अभाव में मन की शक्ति विकृत और कमजोर नहीं हो जाएगी? क्या मन सताने नहीं लगेगा? क्या इस विषय पर कभी चिन्तन चलता है ? बहुत कम व्यक्ति इस विषय पर चिन्तन करते हैं । शरीर ही जीवन नहीं है
आदमी जीवन जीता है । केवल शरीर जीवन नहीं है । शरीर, प्राण और चेतना- इन तीनों के योग का नाम है- जीवन । कोरा शरीर ही जीवन हो तो मरने के बाद भी जीवन होता किन्तु मरने के बाद शरीर रहता है पर जीवन नहीं होता | शरीर में जीवन है प्राणशक्ति । प्राण भी स्वतन्त्र नहीं है।
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