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१४२ आमंत्रण आरोग्य को
ये तीन भाव मन और चेतना को पुष्ट करते हैं । हमारा प्रयत्न हो-तीन प्रशस्त लेश्याओं के भाव अधिक रहें और तीन प्रथम अप्रशस्त लेश्याओं के भाव आएं ही नहीं । इस प्रयत्न से मन को सम्यक् पोषण मिलता रहेगा । सत्त्वगुण : सत्त्वसार
आयुर्वेद में सत्त्वगुण वाले व्यक्ति को सत्त्वसार कहा गया है । उसकी पहचान है-वह उदंड नहीं होगा, भक्तिभाव से ओतप्रोत होगा । दूसरी बात है उसकी स्मृति बड़ी तीव्र होगी । तीसरी बात है-वह कृतज्ञता से भरा पूरा होगा । इन तीनों गुणों-भक्ति, स्मृति और कृतज्ञता-से सत्त्वसार को पहचाना जा सकता है । ये तीनों मन को पुष्ट करने वाले हैं, मन के सुपोषण हैं । उदंडता, विस्मृति और कृतघ्नता ये मन को शक्तिहीन बनाते हैं, मन के कुपोषण हैं।
उपकारी के उपकार की स्मृति रखना, अनुभव करना कृतज्ञता है । तेरापंथ के चौथे आचार्य श्रीमज्जयाचार्य बहुत बड़े ज्ञानी और ध्यानी आचार्य थे । वे मुनि हेमराजजी के पास पढ़े थे । आचार्य बनने के बाद उन्होंने अपने विद्यागुरु हेमराजजी के प्रति कृतज्ञता भाव ज्ञापित करते हुए लिखा
'मैं तो बिन्दु समान हो, तुम कीन्हों सिन्धु समान ।'
'मुनिवर ! मैं तो एक बिन्दु के समान था । तुमने मुझे सिन्धु समान बना डाला ।' ये उद्गार हैं एक महान आगमज्ञा आचार्य थे । वे लिख रहे हैं एक मुनि के लिए । यह है कृतज्ञता | चिन्तनीय प्रश्न
कृतज्ञता से मन को सुपोषण मिलता है । विनम्रता, धृति, अभय, मृदुता, सरलता- ये गुण मन के सुपोषण देने से विकसित होते हैं । जिनमें ये विकसित हैं, वे व्यक्ति सत्त्वसार हैं ।
- प्रत्येक व्यक्ति यह सोचे- वह शरीर को कितना समय दे रहा है और मन के लिए क्या कर रहा है ? केवल शरीर की सेवा करना, मन को उपेक्षित रखना ऐसी ही प्रवृत्ति है कि किसी को करोड़पति बनाकर, एक लोटा देकर घर से निष्कासित कर देना | क्या आज यही नहीं हो रहा है ? व्यक्ति चिन्तन करे और समय का ठीक समायोजन करे, जिससे शरीर और मन- दोनों स्वस्थ रह सकें । दोनों को ठीक पोषण देने वाला व्यक्ति ही जीवन को सुखमय, शांतिमय और आनन्दमय बना सकता है ।
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