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३४. मनोबल की हानि क्यों ?
स्थूलदृष्टि : सूक्ष्मदृष्टि
मानसिक स्वास्थ्य का प्रश्न हमारे लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है । शारीरिक स्वास्थ्य का महत्त्व कम नहीं है परन्तु मानसिक स्वास्थ्य उससे बहुत अधिक महत्त्व का है । सच तो यह है कि हम न तो शरीर के विषय में अधिक जानते हैं और न मन के विषय में । हमारे ज्यादा काम आती हैं- इन्द्रियां । इन्द्रियों द्वारा प्राप्त वस्तुओं का भोग भी अधिक होता है । सारी शक्ति उन्हीं में खत्म हो जाती है, इसीलिए मनुष्य बहिर्गामी बना हुआ है । उसने अपनी अन्तर्दृष्टि का विकास नहीं किया है । प्रत्येक व्यक्ति के भीतर अन्तर्दृष्टि के विकास की क्षमता है । वह सूक्ष्म, सूक्ष्मतम बात को जान सकता है, ऐसी उसमें शक्ति है, पर कभी उसने प्रयास ही नहीं किया । बिना प्रयास किए कुछ भी नहीं होता और जो कार्यजा शक्ति होती है, वह भी निकम्मी बन जाती है । शरीर का जो अवयव काम में नहीं लिया जाता, वह शक्तिहीन हो जाता है । अन्तर्दृष्टि भी जब काम में नहीं ली जाती है तब वह भी निकम्मी हो जाती है । स्थूलदृष्टि की उपयोगिता है पर केवल स्थूलदृष्टि में अटक जाना ही पर्याप्त नहीं है । सूक्ष्मदृष्टि का विकास करना भी आवश्यक है । सूक्ष्म सत्य को जानने की शक्ति का विकास करना भी आवश्यक है । केवल स्थूल सत्य से जीवन तो चल जाएगा पर अच्छा जीवन नहीं चलेगा । हमें दोनों को जानना चाहिए - स्थूल को भी और सूक्ष्म को भी ।
मानसिक स्वास्थ्य और मनोबल
हम स्थूलदृष्टि के साथ-साथ सूक्ष्मदृष्टि का विकस करें । यदि सूक्ष्मदृष्टि से देखेंगे तो शरीर का मूल्य भी बदल जायेगा. मन का मूल्य भी बदल जायेगा ।
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