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१४० आमंत्रण आरोग्य को
शरीर को पोषण देते हैं, वैसे ही मन को पोषण देना चाहिए तो मन के इतने खेल देखने को नहीं मिलते ।
मन का कुपोषण
आयुर्वेद में तीन गुणों की चर्चा है—सत्त्व, रजस् और तमस् | जबजब मन को रजोगुण और तमोगुण की अधिक प्राप्ति होती है तब-तब वह कुपोषण का शिकार होता है | जब मन को यह जहरीला भोजन मिलता है तब उसका परिणाम होता है--अहंकार की वृद्धि । चेतना में अंहकार का क्या प्रयोजन हो सकता है ? चेतना शुद्ध ज्ञान है । जहां ज्ञान है वहां अहंकार कैसा ? जहां ज्ञान है वहां अहंकार नहीं है और जहां अहंकार है वहां ज्ञान नहीं है । जब मन को कुपोषण मिलता है तब आदमी में अहंकार जागता है । जो बड़ा कहलाए, चाहे धन की दृष्टि से, सत्ता या ज्ञान की दृष्टि से और अहंकार न जागे तो यह दुनिया का दसवां आश्चर्य माना जाएगा। ये सब अहंकार के साथ आत्मीयभाव से जुड़े हुए हैं। धन आते ही अहंकार बढ़ जाएगा । सत्ता प्राप्त होते ही आदमी अहंकारी बन अकड़कर चलेगा | ज्ञान की उपलब्धि होते ही वह अपने आपको बहुत ज्ञानी और दूसरों को अल्पज्ञानी या मूर्ख मानने लगेगा । उसका अहं आकाश को छूने लगेगा । यह है मन का कुपोषण | मन का सुपोषण
रजोगुण का राजसी ठाट-बाट अहंकार का ही पर्याय है। मनुष्य को अधोगति में ले जाने वाला मुख्य तत्त्व है अहंकार | यह नरक में ले जाता है, यह परलोक की बात है । हम इसे छोड़ दें । वर्तमान जीवन में भी मनुष्य की अधोगति करता है अहंकार । इतिहास ऐसी घटनाओं से भरा पड़ा है | जब-जब शासकवर्ग अहंकार में आया तब-तब उसका पतन हुआ । पंडित लोग अहंकार में आए तो नीचे गिर गए । धनीलोग भी अहंकार के वशीभूत होकर विनष्ट हो गए ।
विनम्रता जीवन का सबसे महान् गुण है । यह मन के लिए अच्छा पोषण है । यह मन के लिए उत्तम विटामिन है । दूसरे को नीचा दिखाने की वृत्ति, दूसरे की संपत्ति हड़पने की भावना, आक्रमण की भावना- ये सारे मन के कुपोषण हैं । ऐसा प्रतीत होता है कि आज का आदमी मन को खिलाता तो बहुत है पर वह सारा मन के लिए कुपोषण का काम कर रहा है ।
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