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गुरु व्याधि : अल्प व्याधि
चरक में दो प्रकार के रोग बतलाए गए हैं— गुरु व्याधि और अल्पव्याधि । बीमारी गुरु है, भयंकर है किन्तु रोगी का मनोबल इतना ऊंचा है कि वह उस भयंकर व्याधि को भी हल्की बना देता है । चिकित्सक को भ्रम हो जाता है। वह सोचता है- इतनी बड़ी बीमारी में भी चेहरे पर मुस्कान है | अजब आदमी
एक आदमी अल्परोग से ग्रस्त है । वह अल्पतम वेदना भी सह नहीं सकता। थोड़े से कष्ट में भी वह कहेगा- जान निकल रही है, मर रहा हूं, रात को नींद नहीं आती, सिर फट रहा है, यह हो रहा है, वह हो रहा है ।
साध्वी बालूजी (मेरी संसारपक्षीया मां) गंगाशहर में भयंकर बीमारी से आक्रान्त थीं । उन्हें कोई रोग के विषय में पूछता तो वे कहती- कोई खास बात नहीं है | थोड़ा-सा कष्ट है । कष्ट है तो शरीर को है, मुझे कोई कष्ट नहीं है।
जिसका मनोबल उत्तम होता है, भयंकर बीमारी भी उसके लिए सामान्य बन जाती है, छोटी बन जाती है | जिसका मनोबल कमजोर होता है, उसकी सामान्य बीमारी भी भयंकर बन जाती है, बड़ी बन जती है । सुखी बनने का मन्त्र
ये तीन प्रकार के मनोबल हैं। जिस व्यक्ति में उत्तम मनोबल जाग जाता है, संकल्प शक्ति का मनोबल जाग जाता है, सचमुच दुःख-बहुल और समस्याओं से आक्रांत इस जगत में उसका जीवन निर्बाध हो जाता है । कोई भी शक्ति उसे झुका नहीं सकती, दुःखी नहीं बना सकती ।
सुखी बनने का शास्त्रोक्त मंत्र है- मनोबल का विकास । वही व्यक्ति इस दुनिया में सुखी बन सकता है, जिसने मनोबल को विकसित किया है । जागतिक समस्याओं को कोई नहीं मिटा सकता । बड़े-बड़े राष्ट्र भी समस्याओं से घिरे रहते हैं, वे भी उनका उन्मूलन नहीं कर सकते । परन्तु व्यक्ति इन समस्याओं के बीच रहता हुआ भी सुखी रह सकता है । इसका मूल मंत्र है- मनोबल का विकास | जो मनोबली नहीं होता, वह पग-पग पर समस्या के सामने घुटने टेकता रहता है, पराजित होता रहता है ।
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