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मनोबल के तीन रूप १३१
चेष्टा और मनोबल
दूसरा साधन है- चेष्टा । चेष्टा का अर्थ है--- श्रम । श्रम से मनोबल का विकास किया जा सकता है । आसन करना भी श्रम करना है ।
मनोबल का एक नियामक तत्त्व है- धृति । धृति रखना सामान्य बात नहीं है, बहुत बड़ी बात है । मालिक ने नौकर से कहा- पानी लाओ । दो मिनट की देरी से नौकर पानी लाया । मालिक उस पर उबल पड़ा। दो क्षण तक धैर्य रखना भी भारी हो गया, कठिन हो गया ।
धैर्य जीवन की सफलता का महानतम सूत्र है । एक युवक टालस्टाय के पास गया । उसने पूछा- आप अनुभवी हैं । मुझे यह बताएं कि जीवन के विकास का सूत्र क्या है ? सफलता का सूत्र क्या है ?' टालस्टाय ने कहा'धृति- धैर्य सफलता का सूत्र है ।' युवक बोला- 'यह बात समझ में नहीं आती । धैर्य सफलता का सूत्र कैसे हो सकता है ? यदि आप बताते कि ज्ञान, स्वाध्याय, ध्यान, क्षमता, कुशलता (एफिसियेन्सी)- ये सफलता के साधन हैं, तो बात समझ में आ जाती ।' टालस्टाय फिर बोला- 'युवक ! सबसे बड़ा साधन धृति है, धैर्य है । इसके विना सफलता नहीं मिलती ।' युवक तमक उठा- 'क्या धैर्य रखने से चलनी में पानी रखा जा सकेगा ?' टालस्टाय ने कहा- हां, धैर्य रखोगे तो चलनी में भी पानी रखा जा सकेगा । चलनी में पानी टिका रह सकेगा ।' युवक बोला- 'असंभव । कब तक धैर्य रखना होगा ?' टालस्टाय ने मुस्कराते हुए कहा- 'बेटे ! धैर्य तव तक रखना होगा, जब तक पानी जमकर बफे न बन जाए, जम न जाए।'
मनोबल के विकास का नियामक तत्त्व है- धृति । आयुर्वेद का सूत्र है- मनसो नियामिका धृतिः- धृति मन की नियामिका है । जब-जब मन अहितार्थ में प्रवृत्त होता है, तब-तब धृति उसका नियमन करती है, उसे रोक देती है और मन रुक जाता है । धृति का विकास सात्त्विक आहार के विना संभव नहीं है । वीरासन के द्वारा भी धृति का विकास होता है ।
मन का एक काम है- स्मृति । पदमासन के द्वारा स्मृति का विकास होता है, विचारशक्ति का विकास होता है । स्वस्तिक आसन के द्वारा भी स्मृति का विकास होता है ।
इस प्रकार चेष्टा के द्वारा मनोबल बढ़ाया जा सकता है ।
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