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आमंत्रण आरोग्य को
की मांग को पूरा करने के लिए अधिक उपज की जरूरत है । कृषि वैज्ञानिकों ने उसका विकल्प दिया- रासायनिक ऊर्वरक का प्रयोग | उससे उपज बढ़ी। अब धरती की पैदा करने की शक्ति उर्वरक के हाथों चली गई । उसका अंधाधुन्ध प्रयोग होने लगा । हर किसान को यह व्यक्तिगत स्वतन्त्रता प्राप्त है कि वह चाहे जैसे रासायनिक ऊर्वरक का प्रयोग करे और वह अपनी स्वतन्त्रता का प्रयोग भी कर रहा है | इसका परिणाम बड़ा भयंकर हो रहा है । पर्यावरण वैज्ञानिक और भूगर्भ वैज्ञानिक बता रहे हैं- रासायनिक ऊर्वरक के अंधाधुन्ध प्रयोग से भूमिगत जल दूषित हो रहा है । भूमिगत जल स्रोतों से पेयजल की बड़ी मात्रा में आपूर्ति होती है | यदि वे स्रोत दूषित हो जाएं, जल पीने योग्य न रहे तो मनुष्य जाति का भाग्य लड़खड़ा नहीं जाएगा ? केवल भूमिगत जल ही प्रदूषित नहीं हो रहा है, फसल भी प्रदूषित हो रही है । विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार प्रयुक्त ऊर्वरक का पचास प्रतिशत भाग फसल में समा जाता है। उस फसल से उपजा अनाज या अन्य पदार्थ क्या स्वास्थ्य को प्रभावित नहीं करते ? रासायनिक ऊर्वरक का अंधाधुंध प्रयोग करने की व्यक्तिगत स्वतन्त्रता को क्या असीम रखा जाए ? संवैधानिक अधिकार : नैतिक कर्तव्य
स्वतन्त्रता की सीमा है— दूसरों की स्वतन्त्रता बाधित न हो, प्राकृतिक सम्पदा का विनाश न हो । भूमि, जल और पर्यावरण को प्रदूषित करने की स्वतंत्रता नहीं दी जा सकती और न ही दी जानी चाहिए । संवैधानिक अधिकार व्यक्ति या समाज के लिए महत्त्वपूर्ण होते हैं किन्तु सर्वोच्च नहीं । नैतिक कर्त्तव्य का स्थान संवैधानिक अधिकार से भी आगे है । संवैधानिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए पुलिस, फौज, शस्त्र और दण्ड-संहिता है । नैतिक कर्त्तव्य की सुरक्षा के लिए वैसी कोई सुरक्षा पंक्ति नहीं है । उसका सुरक्षा कवच केवल सामाजिक चेतना का जागरण है | वह व्यक्तिगत स्वार्थ से दबी हुई प्रतीत होती है । जब समाज और सत्ता के शीर्ष स्थानों पर बैठे लोग व्यक्तिगत स्वार्थ की साधना में लग जाते हैं तब स्वतन्त्रता की आधारभित्ति ही हिल जाती है ।
संदर्भ : धर्म-परिवर्तन
तीसरा उदाहरण है धर्म-परिवर्तन की स्वतन्त्रता का । हर व्यक्ति अपने
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