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आमत्रण आराग्य का
सम्प्रदाय अपने लिए स्वतन्त्र राष्ट्र या स्वायत्त शासन की कल्पना संजोए हुए है । यदि यह मानसिकता आकार ले ले तो किसी विशाल राष्ट्र की कल्पना ही नहीं की जा सकती । आज का हिन्दुस्तान चालीस से अधिक खंडों में विभक्त हो तब यह कल्पना साकार होती है | क्या यह राष्ट्र के लिए हितकर होगा? क्या एक बड़ी शक्ति खण्डों में बंटकर कमजोर नहीं हो जाती ? हिन्दुस्तान पहले छोटे-छोटे राज्यों में बंटा हुआ था, फिर भी एक छोटे राज्य में अनेक सम्प्रदायों का अस्तित्व विद्यमान था । उस समय साम्प्रदायिक संघर्ष अधिक थे । कभीकभी राजा के निरंकुश शासन में सम्प्रदायों का अस्तित्व खतरे में पड़ जाता था । लोकतन्त्र में सारी परिस्थिति बदल गई । अब किसी भी सम्प्रदाय को कोई खतरा नहीं है । सम्प्रदाय निरपेक्ष राज्य में सब सम्प्रदायों को अपना-अपना विकास करने का अवसर उपलब्ध है । चिन्तन की गहराई में उतरकर देखें तो समस्या सम्प्रदाय की नहीं है, समस्या सम्प्रदाय के मुखिया लोगों की है। उनकी अपनी महत्त्वाकांक्षा समस्या बन रही है | यमन में मुसलमानों का राज्य है। वहां एक लाख हिन्दू भी रहते हैं । वहां हिन्दुओं और मुसलमानों में कोई टकराव नहीं है, होड़ और संघर्ष नहीं है । यह संघर्ष हिन्दुस्तान उपमहाद्वीप में ही क्यों ? इसका कारण यही है कि यहां हिन्दू एक सम्प्रदाय मान लिया गया और दो सम्प्रदायों में विरोध की कल्पना स्थिर-रूढ़ हो गई । हिन्दू को केवल समाज या राष्ट्रीयता के साथ जोड़े बिना इस समस्या का समाधान दिखाई नहीं देता |
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