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८८ आमंत्रण आरोग्य को
करना आदमी नहीं चाहता । अपराध, हिंसा- ये सब असंयम के परिणाम हैं इसलिए असंयम को मृत्यु कहा जाता है । कोई आदमी भूख से मरता है तो विपक्ष सरकार की नींद को हराम कर देता है । असंयम से अथवा अधिक खा-खाकर हजारों लोग अकाल मृत्यु से मरते हैं। उस ओर किसी का ध्यान ही नहीं जाता । मादक वस्तु का सेवन कितने लोगों को बेमौत मार रहा है ! फिर असंयम मृत्यु है, यह समझने में कठिनाई नहीं होती। यदि संयम का मूल्यांकन हुआ होता तो राज्यतन्त्र और शासक वर्ग पर भ्रष्टाचार का आरोप कभी नहीं होता । असंयम है और वह व्यापक है तभी इन सब घटनाओं की पुनरावृत्तियां होती रहती है। सीमाकरण की स्थिति बने
___ अपने से अपना अनुशासन, अणुव्रत की परिभाषा
इस परिभाषा का तात्पर्य हृदयंगम किया होता तो समाज आज की कालरात्रि को नहीं भोगता । अणुव्रत दर्शन का महत्त्वपूर्ण सूत्र है- इन्द्रिय और मन के स्वामी बनो, दास मत बनो । इसकी क्रियान्विति के लिए सीमाकरण की स्थिति बनती है । हिंसा और परिग्रह से सर्वथा मुक्त समाज की कल्पना करना सम्भव नहीं है । हिंसा और परिग्रह की सीमा से मुक्त रहना समाज के हित में नहीं है । आज निरपराध मनुष्य और प्राणी मारे जा रहे हैं, यदि हिंसा की सीमा होती तो ऐसा नहीं होता । मनुष्य मनुष्य को अछूत मान रहा है, यदि हिंसा की सीमा होती तो ऐसा नहीं होता ।
तेईस करोड़ आदमी गरीबी की रेखा के नीचे का जीवन जी रहे हैं । यदि व्यक्तिगत स्वामित्व की सीमा होती तो ऐसा नहीं होता । अट्टालिकाओं और झोंपड़ियों का संगम नहीं होता यदि संग्रह की सीमा नहीं होती । असीम केवल आकाश हो सकता है । असंयम असीम हो, यह अवांछनीय है व्यक्ति के लिए भी और समाज के लिए भी । समाज का अर्थ है सीमा की स्वीकृति । वह हार्दिक नहीं होती, राज्यशासन-कृत होती है । अणुव्रत का अर्थ है- सीमा की स्वीकृति । वह हार्दिक होती है, व्यवस्थाकत नहीं होती ।
अणुव्रत एक अनिवार्यता है । नैतिकता विहीन समाज कभी स्वस्थ समाज नहीं हो सकता | आप चाहें या न चाहें, यदि स्वस्थ समाज का निर्माण करना है तो अनिवार्य है 'संयम ही जीवन है', का घोष और अनिवार्य है अणुव्रत की स्वीकृति |
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