________________
निष्काम कर्म और गीता ९३
नहीं पाया जा सकता । प्रश्न है दरवाजे को बंद करने का | दरवाजा बंद कैसे करें ? उसका सूत्र है-काम करते हुए भी निष्काम रहना, अकाम रहना ।
कृष्ण का अवदान
कृष्ण का यह एक महत्त्वपूर्ण अवदान है भारतीय चिन्तन को कि कर्म में अकर्म और काम में निष्काम रहा जा सकता है । किन्तु प्रश्न फिर वही आ जाता है कि भारतीय चिन्तन को इतना बड़ा सूत्र मिला, जो बंधनमुक्ति और मानसिक तनाव की समस्या के लिए अत्यन्त उपयोगी है | इतना होते हुए भी न तो बंधन-मुक्ति की बात सामने है और न मानसिक तनाव-मुक्ति की बात ही सामने है । यह क्यों ? यह इसलिए कि वाक् मात्र से कोई निष्काम नहीं बनता । कोई आदमी किसी कारणवश काम करे और कहे कि मैं निष्काम भाव से काम कर रहा हूं, यह कभी सम्भव नहीं होता । यह एक ऐसा वहाना हाथ में आ गया कि आदमी चाहे जैसा काम करता है और कोई कहे कि यह काम ठीक नहीं है तो वह कहेगा- तुम समझते नहीं हो, मेरी इसमें कोई आसक्ति नहीं है । मैं तो विलकुल निष्काम भाव से कार्य कर रहा हूं । कई लोग वुरेसे बुरे तरीकों से धन कमाते हैं । उनसे जव कहा जाता है कि तुम ऐसे तरीकों से धन कमाते हो ? वे कहते हैं--- हमारी धन के प्रति कोई लालसा ही नहीं है । बस, हम तो कमा रहे हैं, हमारी कोई आसक्ति नहीं है । पुण्य कार्य में धन लगाने की इच्छा है ।
मन की आवाज : आत्मा की आवाज
संत फ्रांसिस ने लिखा- जीवन में कुछ क्षुद्रता के क्षण आते हैं। उन्होंने अपने बारे में लिखा- मेरे जीवन में क्षुद्रता के नौ क्षण आए । एक क्षुद्रता थी- मन की आवाज को मैंने आत्मा की आवाज मान ली । बहुत लोग कहते हैं कि यह मेरी आत्मा की आवाज है । है तो मन की आवाज और मान ली जाती है आत्मा की आवाज । कितना अन्तर होता है ! मन की आवाज बहुत क्षुद्र होती है, बहुत खतरनाक होती है, दूसरों को धोखा देने वाली होती है और उस आवाज को आत्मा की आवाज मानकर दुहाई दे दी जाती है यह मेरी अन्तरात्मा की आवाज है । अरे ! तुम अन्तरात्मा को तो पहचानते ही नहीं ? कहां से आत्मा की आवाज आ रही है ? महात्मा गांधी ने इस पर बहुत अच्छा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org