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११० आमंत्रण आरोग्य को
रहा है । इसका सम्बन्ध हमारे भोजन से भी है और पैदा होने वाले रसायनों से भी है।
आक्रामकता का कारण
वर्तमान में फास्फोरस की मात्रा शरीर में ज्यादा जा रही है और मेग्नेशियन की मात्रा कम हो रही है | यह भी आक्रमक-वृत्ति का एक कारण है । शीशे की, तांबे की, जस्ते की मात्रा शरीर में ज्यादा जाती है, व्यक्ति को आक्रामक बना देती है | आज के जो बर्तन हैं, वे देखने में अच्छे लगते हैं। लोग उन बर्तनों में खाना पकाते हैं, दूध गर्म करते हैं । पर वे नहीं जानते कि जस्ते से पुते हुए वर्तनों की चीजे पेट में जाकर कितना नुकसान करती हैं | आज किसी से कहा जाए-हांडी में दूध गर्म करो, हांडी में खिचड़ी पकाओ । लोग कहेंगे -किस शताब्दी की वात है । यह तो पिछड़ेपन की बात है । आज की शिष्टता में, सभ्यता में ऐसी चकाचौंध चाहिए, जिसको देखते ही मन ललचा जाए । पर इस बात का पता नहीं है कि हांडी में गर्म किया हुआ दूध, खिचड़ी, कढ़ी बिल्कुल नुकसान नहीं करती और इन बर्तनों में पकाये हुए खाद्य या पेय पदार्थ पेट में जाकर बहुत नुकसान करते हैं, भड़काने वाली वृत्तियां पैदा करते है । कलह की वृत्ति, संघर्ष की वृत्ति, उत्तेजना की वृत्ति और असहिष्णुता की वृत्ति जो बनी है, उसके पीछे यह भी एक कारण है ।
स्वाद में भी अन्तर रहेगा । कडाही में गर्म किए दूध का जो स्वाद होगा वह कलई चढ़े बर्तन में गर्म किए दूध में कभी नहीं होगा ।
हिंसा के निमित
दैनिक उपयोग में आने वाले अनेक पदार्थ हमारी वृत्तियों को प्रभावित करते हैं । किन्तु सभ्यता या सुविधा के विकास के लिए स्थितियां इतनी बदल गईं और मांग इतनी बढ़ गई कि इन स्थितियों में पीछे लौट आना सम्भव नहीं लगता । आदमी जानते हुए भी इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं है कि हम लौट जाएं और फिर से मिट्टी के बर्तनों में रसोई पकाएं ! यह मात्र कल्पना जैसी बात होगी । किन्तु फिर भी हमें इस सचाई को स्वीकार करना ही पड़ेगा कि ये परिस्थितियां भी हमारी बदली हुई भावनाओं के कारण पैदा हुई हैं ।
समग्र दृष्टि से देखें तो शरीर की क्रिया शरीर में पैदा हुए रसायन और
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