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शरीर, मन और मनोबल १२३
मूल तत्त्व है प्राण
आयुर्वेद में जीवन की एक प्रणाली प्रतिपादित है । उसमें जीवन के मुख्य तत्त्वों का अति सूक्ष्मता से विवेचन है ।
जीवन का मूल तत्त्व है-प्राण | प्राण हमारी शक्ति का स्रोत है | मेडिकल सांइस में अभी तक प्राण पर कोई विशेष काम नहीं हुआ है । परन्तु आयुर्वेद में प्राण का सूक्ष्म विवेचन प्राप्त है | उसका यह विशिष्ट अवदान है । प्राण के पांच प्रकार हैं—प्राण, अपान, उदान, समान और व्यान । ये पांचों प्राण शरीर में काम करते हैं । इनके अवान्तर प्रकार अनेक हैं। प्राण के द्वारा सारा जीवन संचालित होता है । अंगुली हिलती है । उसका संचालक कौन है ? क्या शरीर अंगुली को हिला रहा है? यदि हां, तो मुर्दे की अंगुली भी हिलनी चाहिए । पर अंगुली को शरीर नहीं, प्राण हिला रहा है । इसीलिए जीवनधारी का एक नाम है-'प्राणी ।' जिसमें प्राण होता है, वह प्राणी कहलाता है । जीवन का पूरा संचालन प्राण के हाथों में है। प्राण समाप्त तो जीवन भी समाप्त । प्राण है तो जीवन है।
श्वास : श्वास-प्राण
श्वास लेना जीवन का लक्षण माना जाता है | आहार करना भी उसका एक लक्षण है । श्वास कौन लेता है ? शरीर श्वास नहीं लेता । भोजन कौन ले रहा है ? शरीर भोजन नहीं लेता । शरीर एक प्राण है, श्वास एक प्राण है, आहार एक प्राण है । जब तक ये प्राण हैं तब तक शरीर चलता है, श्वास आता है और आहार का ग्रहण होता है ।
श्वास और श्वास-प्राण एक नहीं हैं। श्वास भिन्न है और श्वास-प्राण भिन्न है । श्वास है हमारे शरीर से होने वाली क्रिया । श्वासतंत्र से श्वास क क्रिया निष्पन्न होती है, किन्तु श्वास-प्राण एक भिन्न शक्ति है । एक आदर्म मर गया तो क्या उसका श्वसनतंत्र समाप्त हो गया ? क्या श्वसनलिका समाप्त हो गई ? ये अवयव विद्यमान हैं किन्तु उन्हें जो शक्ति संचालित करती थी वह प्राणशक्ति चुक गई, समाप्त हो गई । जब प्राण चला जाता है तब शरी का कोई भी अवयव काम नहीं करता । हमारे सारे अवयव- हाथ, पैर, सिर पाचनतंत्र आदि प्राण के द्वारा ही काम करते हैं ।
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