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शरीर, मन और मनोबल १२५
बल है | तीसरा है- युक्तिकृत । यह उपाय से विकसित होने वाला बल है।
कुछ व्यक्तियों में बल जन्मजात होता है । महाराणा प्रताप शरीर-बल के धनी थे । वे जिस भाले से शत्रु पर प्रहार करते, वह भाला आज अनेक व्यक्तियों से भी नहीं उठाया जा सकता । भीम और हनुमान का शरीर-बल विख्यात है। यह बल जन्म से ही होता है । यह सबमें समान नहीं होता । यह प्राकृतिक देन है । इसकी कोई स्पर्धा नहीं कर सकता । बाहुबली बारह महीनों तक कायोत्सर्ग की मुद्रा में खड़े रहे । यह शरीर-बल का उत्कृष्ट उदाहरण है । ऋतु-चक्र और बल
बल का दूसरा प्रकार है- कालजन्य । शरीर का बल सदा समान नहीं रहता । एक ऋतु में शरीर बल एक प्रकार का होता है और दूसरी ऋतु में वह दूसरे प्रकार का होता है । एक दिन में भी ऋतुओं का चक्र चलता रहता है। प्रातःकाल एक ऋतु होती है, मध्याह्न में दूसरी ऋतु और सायंकाल में तीसरी ऋतु । दिन और रात में छह ऋतुएं आ जाती हैं । दिन में जैसा बल होता है वैसा रात में नहीं होता । आदमी का बल दिन में अधिक होता है और भूत का बल रात में अधिक होता है । इसीलिए युद्ध दिन में चलता है और सूर्यास्त के होते-होते वह बंद कर दिया जाता है ! जब सूर्य की प्रखर किरणे शरीर पर पड़ती हैं तब शरीर में ऊर्जा जागती है । जैसे ही सूरज अस्त होता है, वैसे ही बल न्यून हो जाता है, आदमी कमजोर हो जाता है । यह कालकृत बल है । यह ऋतु के अनुसार बदलता रहता है । सर्दी के मौसम में जो बल रहता है, वह गर्मी के मौसम में नहीं रह पाता । जेठ का महीना है । भयंकर लू चल रही है। शरीर का बल पचास प्रतिशत कम हो जाता है । वही शरीर-बल शीतकाल में बढ़ जाता है।
उपाय से बढ़ता है बल
तीसरा बल है- युक्तिकृत, उपायकृत । इसके तीन प्रकार हैं- आहार, चेष्टा और योग । आहार से बल मिलता है । यह बल बढ़ाने की एक युक्ति है । यदि अनुकूल आहार मिलता है तो शरीर-बल बढ़ता है और यदि प्रतिकूल आहार लिया जाता है तो शरीर का बल क्षीण हो जाता है ।
चेष्टा से भी बल प्राप्त होता है । जो आदमी चेष्टा करता है, वह श्रम
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