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२३. हिन्दू सम्प्रदाय नहीं, राष्ट्रीयता है
चिन्तनीय प्रश्न
हमारा जगत् मिश्रण का जगत् है । शब्द भी तीन प्रकार के होते हैंरूढ़, यौगिक, और मिश्र । मनुष्य का चिन्तन भी एक प्रकार का नहीं होता, धारणाएं भी एक प्रकार की नहीं होती। कुछ यथार्थ होता है और कुछ अयथार्थ । कुछ ऐसा भी होता है कि अयथार्थ यथार्थ रूप में प्रतिष्ठित हो जाता है । इसका उदाहरण है हिन्दू नाम का धर्म-सम्प्रदाय । दो सम्प्रदाय आमने-सामने खड़े कर दिए- एक हिन्दू सम्प्रदाय और दूसरा मुस्लिम सम्प्रदाय । ये प्रतिष्ठित और स्वीकृत भी हो गए । क्या हिन्दू नाम का कोई सम्प्रदाय है ? है तो कब से? कौन है उसका प्रवर्तक ? क्या किसी प्रवचन ग्रन्थ में हिन्दू सम्प्रदाय का उल्लेख है ? यदि नहीं है तो इसे स्वीकृति कैसे मिली ?
हिन्दू सम्प्रदाय नहीं है
हिन्दू का सम्बन्ध किसी सम्प्रदाय के साथ नहीं है । उसका सम्बन्ध समाज, संस्कृति, राष्ट्रीयता अथवा भारतीयता के साथ है । प्राचीन भारत में दो सांस्कृतिक धाराएं प्रचलित थीं- द्रविड़ संस्कृति और आर्य संस्कृति । उसके उत्तरकाल में उन दोनों के परिवर्तित नाम- श्रमण संस्कृति और ब्राह्मण संस्कृति हो गए। जैन. आजीवक बौद्ध, सांख्य, तापस, परिव्राजक आदि श्रमण संस्कृति के अंतरवर्ती सम्प्रदाय थे । मीमांसक, नैयायिक, वैशेषिक, आदि ब्राह्मण संस्कृति के अंतरवर्ती सम्प्रदाय थे । इन सम्प्रदायों में परस्पर संघर्ष भी चलता था किन्तु भारतीयता पर कोई प्रश्नचिह्न नहीं लगा । साम्प्रदायिक दृष्टि से विभक्त होते हुए भी वे भारतीयता की दृष्टि से अविभक्त थे ।.
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