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२६. स्वस्थ समाज-रचना में हमारी सहभागिता
स्वस्थ समाज रचना : पहला आधार
स्वस्थ समाज के संयोजन का पहला आधार है- आत्मानुशासन | जब आत्मानुशासन जागता है तब आदमी में अहिंसा के भाव प्रबल होते हैं । हिंसा समस्या का समाधान नहीं है, यह श्रद्धा प्रकट होती है । लड़ाई भी होती है तो आखिर उसकी एक सीमा होती है | आदमी अनन्त काल तक नहीं लड़ सकता। पिछले पांच हजार वर्षों में महाभारत से लेकर आज तक छः-सात हजार युद्ध लड़े गये हैं। क्या इतिहास में ऐसा कोई युद्ध मिलता है, जो सौ वर्ष तक लड़ा गया हो ? यदि इतना लम्बा युद्ध चले तो अदमी भूखे मर जाएं । उसे खाने को रोटी ही नहीं मिले । कुछ लोग हजार वर्ष तक लड़ने की बात करते हैं पर यह समझदारी की बात नहीं है । युद्ध में लगने से अन्य विकास रुक जाते हैं । अंत में थककर आदमी को समझौता करना पड़ता है । इससे हम समझ सकते हैं-- समस्या का असली समाधान हिंसा है या अहिंसा ?
समाधान है अहिंसा
प्रवृत्ति काल में आदमी में एक आवेग-उन्माद होता है, अतः वह कुछ भी कर गुजरता है । उस समय वह परिणाम की ओर नहीं देखता पर परिणाम की ओर देखना भारतीय चिन्तन का महत्त्वपूर्ण सूत्र रहा है । प्रवृत्तिवाद आपादभद्र लगता है । प्रारम्भ में अच्छा लगता है पर परिणाम में विरस हो जाता है। आदमी को खाना-पीना, भोग करना अच्छा लगता है । इन्द्रियों को भी वह रुचता है इसीलिए जब आदमी खाने बैठता है तो बहुत सारा भोजन खा जाता है ।
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