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आमंत्रण आरोग्य को
को छूने वाली भाषा है । प्रत्येक धर्म ने जो कुछ कहा है, वह अपनी अपेक्षा से कहा है । हम उसकी अपेक्षा को समझने का प्रयत्न करें किन्तु अपनी अपेक्षा को उस पर लादने का प्रयत्न न करें । आचार्य सिद्धसेन ने कहा- जितने बोलने के प्रकार हैं, उतने ही दृष्टिकोण हैं । यह सापेक्षता का सिद्धान्त उपाय है विवाद के परिसमापन का । कोई भी व्यक्ति सम्पूर्ण सत्य का प्रतिपादन नहीं कर सकता। वह कुछ सापेक्ष सत्यों का ही प्रतिपादन करता है । हम निरपेक्ष होकर उस सत्यांश का मूल्यांकन न करें । सब धर्मों के विचार समान हों, यह आवश्यक नहीं है, सम्भव नहीं है । यह भिन्नता चिन्तन की स्वतंत्रता का प्रतिफलन है इसलिए हम वैचारिक स्वतन्त्रता का सम्मान करें और सहिष्णुता का विकास करें । घृणा की आदत को बदलने का अभ्यास करें । इतना सा होता है तो धर्म या संप्रदाय के नाम पर हिंसा फैलाने का सिलसिला बंद हो सकता है। हम यथार्थ को सर्वोपरि मूल्य दें | हमारी यथार्थ की चेतना कल्पनाजनित अनेक समस्याओं का समाधान है ।
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