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१८. जीवन और जीविका के बीच भेदरेखा खींचें
जीवन-दर्शन की कसौटी
स्वर्ग परोक्ष है । मोक्ष अत्यन्त परोक्ष है । मन की शान्ति प्रयत्क्ष है | प्रयत्क्ष के प्रति जितना आकर्षण है, उतना परोक्ष के प्रति नहीं होता । गुरु अपने शिष्य को प्रतिपादन की शैली का अर्थ समझा रहे थे । वे बोले-धर्म अव्याकृत नहीं है । उसका प्रतिपादन किया जा सकता है । वह जीवन-दर्शन का स्पर्श करने वाला हो तो अधिक उपयोगी और अधिक आकर्षक हो सकता है । कोरी उपदेशात्मक शैली निरन्तर आकर्षण उत्पन्न नहीं करती । चरित्र अथवा दृष्टान्त का सहारा लो और अपने वक्तव्य को आकर्षक बनाओ । प्रतिपादन का लक्ष्य होना चाहिए, शान्तिपूर्ण जीवन का दर्शन ।
जीवन दर्शन की तीन कसौटियां हैं—
व्यक्ति को क्या लाभ मिल रहा है ? समाज को क्या लाभ मिल रहा है ?
वर्तमान की समस्या का समाधान हो रहा है या नहीं ?
यदि वर्तमान की समस्य सुलझती है तो भविष्य अपने आप उज्ज्वल बन जाता है ।
भयारण्य : अभयारण्य
एक राज्य की विचित्र परंपरा । साठ वर्ष की आयु के बाद राजा को राजगद्दी छोड़नी होती । नये राजा का अभिषेक हो जाता । पुराने राजा को अरण्य में छोड़ दिया जाता । यह परंपरा लम्बे समय तक चलती रही । राज्यमुक्त
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