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आमत्रण आराग्य का
हम कार्य को समझते हैं, उसके समन्वय को नहीं समझते । शरीर, इन्द्रियां, प्राण, मन और चेतना के समन्वय का नाम है जीवन । इनमें से कोई एक जीवन तत्त्व नहीं है।
क्या शरीर जीवन है ? नहीं । क्या इन्द्रियां जीवन है ? नहीं । क्या प्राण, मन और चेतना जीवन है ? उत्तर होगा नहीं। फिर जीवन क्या है ?
जीवन है समन्वय । शरीर इन्द्रिय, प्राण, मन और चेतना इनका समवाय है जीवन । पहिया कार नहीं है । इंजिन भी कार नहीं है । एक्सीलेटर और ब्रेक भी कार नहीं है | इन सबका योग है कार ।
जीवन का लक्ष्य
बहुत लोग पूछते हैं- जीवन का लक्ष्य क्या है ? इसका उत्तर बहुत सीधा भी है और बहुत जटिल भी है । व्यवहार नय की भाषा में लक्ष्य है विकास, आनन्द या सुख । निश्चय नय की भाषा में लक्ष्य है स्वतंत्रता । मनुष्य बुद्धिमान प्राणी है । वह अपने लक्ष्य का निर्धारण करता है, उसकी पूर्ति के लिए साधनसामग्री जुटाता है | शरीर, इन्द्रियां, प्राण और मन- ये लक्ष्य की पर्ति के साधन हैं । साध्य है चेतना, चेतना का विकास, चेतना की स्वतंत्रता । अपने आप में होना, अपने आपको जानना और अपने अस्तित्व को सुरक्षित रखना, यह वस्तुगत लक्ष्य है । इसी आधार पर मनुष्य की स्वतंत्रता सुरक्षित है । निर्धारित लक्ष्य में अव्यवस्था हुई है । मनुष्य ने शरीर और इन्द्रियों की तृप्ति को लक्ष्य बनाया इसीलिए जीवन का मुख्य लक्ष्य बन गया- सुख ।
जीविका : जीवन
सुखवाद आचारशास्त्र का एक बहुचर्चित वाद है | सुख पाने के लिए नैतिक या धार्मिक जीवन जरूरी है । किन्तु सुख को शरीर और इन्द्रिय तक सीमित कर दिया गया इसीलिए नैतिकता जरूरी नहीं रही, जीविका उससे अधिक
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