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६२ आमत्रण आरोग्य का
संस्कार साथ नहीं जाएंगे? मनुष्य में पाशविक वृत्तियां हैं । यह सर्वसम्मत सचाई है । क्रूरता पाशविक वृत्ति है । आध्यात्मिक व्यक्ति का पहला लक्षण है करुणा । मांसाहार उस पर एक आघात है इसलिए आध्यात्मिक व्यक्ति भूख मिटाने के लिए जो कुछ मिलता है, वही नहीं खाता किन्तु विवेकपूर्वक खाता है । उसके सामने आहार के दो वर्ग बन जाते हैं-खाद्य और अखाद्य । जो आध्यात्मिक विकास में बाधक न बने, वह खाद्य | जो उसमें बाधक बने, वह अखाद्य । मनुष्य केवल शरीर नहीं है, जो केवल भूख बुझाने की चिन्ता करे | वह चेतनामय आत्मा भी है । वह चैतन्य जागरण की भी चिन्ता करता है इसलिए हम आहार का चयन भूख के शमन और चेतना के जागरण-दोनों दृष्टिकोणों को सामने रखकर करते हैं ।
शाकाहार की लहर
मनुष्य प्रकृति से शाकाहारी है । शरीर-संरचना और शरीर -क्रिया के आधार पर जानवरों को दो श्रेणियों में बांटा गया है | गाय, घोड़ा हाथी—ये शाकाहारी जानवर हैं । बिल्ली, कुत्ता, शेर-ये मांसाहारी प्राणी हैं | दोनों की शरीर-संरचना और शरीर-क्रिया में जो अंतर है, उसके कुछ पहलू ये हैंशाकाहारी
मांसाहारी पानी जीभ निकाल कर नहीं पीते पानी जीभ से चाटकर पीते हैं। बल्कि पानी में मुंह डुबोकर पीते
दांत और नाखून सपाट होते हैं | दांत और नाखून नुकीले होते हैं । • पाचन मुंह से शुरू होता है। पाचन आमाशय से शुरू होता है।
पेट की आंतें लम्बी होती हैं। पेट की आंतें छोटी होती हैं । __ मनुष्य की तुलना शाकाहारी जानवरों से की जा सकती है इसलिए प्रकृति से वह मांसाहारी नहीं है । मांसाहार उसने अभ्यास से सीखा है । जैन धर्म ने शाकाहार का आंदोलन शुरू किया था । उसका प्रभाव व्यापक हुआ । आज समूचे संसार में वह एक लहर के रूप में चल रहा है । संभव है—कुछ समय बाद यह आहार की मुख्य धारा बन जाए ।
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