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सत का कसोटा ६५
चोर का पता लगाने के लिए प्रयत्न शुरू हए । पार्श्ववर्ती बोरनदी ग्राम में एक कुम्हार रहता था । वह अंधा था । लोग मानते थे- उसके मुंह देवता बोलता है । चोर का पता लगाने के लिए उसे बुलाया गया । कुम्हार आचार्य भिक्षु की समझ से परिचित था । वह उनके पास आया । औपचारिक बातें की। बातचीत के प्रसंग में उसने कहा- कल रात गांव में चोरी हो गई, आपको पता होगा । आपका संदेह किस पर है ? आचार्य भिक्षु उसकी ठग विद्या को समाप्त करना चाहते थे । आपने कहा मेरा संदेह तो मजने पर है ।
रात का समय । चोरी वाले घर पर अनेक लोगों का जमाव | सबके मन में रहस्योद्घाटन की जिज्ञासा । कुम्हार के शरीर में देवता का आवेश । वह आविष्ट मद्रा में बोला- ' डाल दे रे, डाल दे ! गहने डाल दे ।' लोगों ने कहा- 'ऐसे कौन डालेगा? आप चोर का नाम प्रकट करें ।' कुम्हार ने आवेश की मुद्रा में कहा— 'चोर है मजना । उसी ने गहने चुराये हैं ।' पास में एक फकीर बैठा था । उसने कहा - 'मजना तो मेरे बकरे का नाम है । वह क्या गहने चुराएगा ?' चमत्कार जनता के आक्रोश में बदल गया ।
कसौटी है अध्यात्म
संत की कसौटी है अध्यात्म । आत्मा में होना संत की परिभाषा है । भारत वर्ष में इस कसौटी वाले संतों का महिमामंडित गुरु- पीठ रहा है | चमत्कारी संत भी उस परम्परा के साथ-साथ चले हैं । प्राचीन काल में चमत्कार के साथ अध्यात्म (केवल नाम का अध्यात्म) चलता था । आज का युग वैज्ञानिक है । वैज्ञानिकों ने बहुत नियम खोज लिये हैं, इसलिए अध्यात्म की विशुद्ध परम्परा संतों के साथ जुड़ी रहे, इसमें अध्यात्म का गौरव है और जनता की भलाई है । संत का काम होता है—अपना कल्याण और समूचे जगत् का कल्याण । वह सत्य की साधना के द्वारा ही संभव है ।
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