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२२. क्या राजनीतिज्ञ के लिए आध्यात्मिक
प्रशिक्षण जरूरी है ?
सपना सपना ही रह गया
हिंसा, दमन और बल प्रयोग के आधार पर खड़ा किया गया प्रासाद अपने आप ढह जाता है । उसका उदाहरण है- साम्यवाद । साम्यवाद का दर्शन मानवीय चिंतन का एक उत्तुंग शिखर है । उसका आरोहण यदि अहिंसा, लोकतंत्र
और साधन शुद्धि के विचार के साथ होता तो धरा पर स्वर्ग उतर आता । आरोहण इस विधि से नहीं हुआ इसीलिए जो एक सपना था, वह सपना बनकर ही रह गया । गरीब के प्रति करुणा, सहयोग की भावना कठोरता और क्रूरता में बदल गई । अधिनायकवादी शिकंजा इतना मजबूत बना कि प्रतिपक्ष का स्वर दूसरी बार उठ नहीं सका | जिसने विरोध किया, परिवर्तन की मांग की, वह प्राणों से हाथ धो बैठा । सोवियत राष्ट्रपति गोर्बाच्योव ने ग्लानोस्त और पेरोस्त्रोइका के जो मंगलपाठ दिए हैं, वे कोई आकस्मिक जल-कण नहीं है । उनकी पृष्ठभूमि में कितने अग्नि-कणों का इतिहास छिपा हआ है ।
अधिनायक की दुर्बलता
प्रतिक्रिया को हम क्रिया की भाषा में नहीं बदल सकते । सत्तर वर्ष की लम्बी कालावधि तक हिंसा का साम्राज्य पनपता गया । यह अपने आप में एक
आश्चर्य है । इस भैरवचक्र को बदलने का प्रयत्न उससे भी बड़ा आश्चर्य है। हिंसा या दमन का एक दिन निश्चित पर्यवसान होता है, इस संचाई को इतिहास के संदर्भ में परखा जा सकता है । जिस प्रणाली में एक अधिनायक में हजारों
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