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१९. मनुष्य की प्रकृति है शाकाहार
नवभारत टाइम्स (५ मई ९०) में 'ईसाइयत और शाकाहार' शीर्षक एक संवाद पढ़ा । उसे पढ़कर लगा पश्चिमी देशों में शाकाहार कुतूहल, आश्चर्य या विवाद का विषय बना हुआ है । आहार मनुष्य की जरूरत है इसलिए वह निर्विवाद होना चाहिए पर विवाद मनुष्य की प्रकृति है इसलिए वह किसी भी क्षेत्र को विवाद-मुक्त नहीं रहने देता । विवाद है अनाज और मांस के बीच | अनाज और सागभाजी खाना मनुष्य का प्राकृतिक भाोजन माना जाता है और चिरकाल से माना जाता रहा है ।
जॉन ब्रूमर का कथन
ब्रिटेन के कृषि, खाद्य एवं कृषिपालन मंत्री जान ब्रूमर ने कहा- 'शाकाहार सर्वथा अप्राकृतिक है ।' मंत्री महोदय के सामने अन्न की समस्या रही होगी अथवा मत्स्य पालन का उद्योग लड़खड़ाता होगा इसलिए वे प्राकृतिक आहार को अप्राकृतिक और अप्राकृतिक आहार को प्राकृतिक बतलाकर आहार के विषय में अवांछनीय वकालात करते हैं। बाइबिल के आधार पर उनका कहना है'हम आकाश की चिड़ियों और जमीन के जानवरों के मालिक हैं इसलिए उन्हें खाते हैं ।' यह उक्ति एक गर्वोक्ति है। मालिक वह हो सकता है, जो दूसरों की रक्षा करे | उनके प्राण लूटने वाला दुश्मन हो सकता है, मालिक कभी नहीं। सच तो यह है कि मनुष्य अपने शरीर का भी मालिक नहीं है । यदि वह मालिक होता तो उसे रोगग्रस्त—बीमार नहीं होने देता, बूढ़ा नहीं होने देता और मौत के जबड़े में नहीं जाने देता । अहिंसा का दर्शन मालिक होने का दर्शन है । हम आकाश की चिड़ियों और जमीन के जानवरों को अपने समान समझें, उनके प्राण न लूटें तो हम मालिक कहलाने के अधिकारी हो सकते हैं ।
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