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५४ आमत्रण आराग्य का
मानसिक तनाव है । आज का सामान्य आदमी आजीविका के प्रश्न से उलझा हुआ है । एक विद्यार्थी पढ़ने से पहले, पढ़ते समय और पढ़ने के पश्चात् इस समस्या को दिमाग से नहीं निकल पाता कि अच्छी नौकरी लगेगी या नहीं, अच्छा व्यवसाय हाथ लगेगा या नहीं । वर्तमान समाज में प्रश्न केवल पैसे का नहीं है, प्रतिष्ठा का प्रश्न भी उसके साथ जुड़ा हुआ है । पैसा और प्रतिष्ठा- इन दोनों स्थितियों के निर्माण में काफी मानसिक तनाव जमा हो जाता है | बहुत लंबे समय तक तनाव का जीवन जीना मनुष्य के लिए कठिन होता है | वह उससे छुट्टी पाने का सीधा रास्ता खोज लेता है, नशे की आदत बन जाती है।
विश्वव्यापी समस्या
नशा केवल व्यक्तिगत आदत है या सामाजिक मूल्यों, अवधारणाओं और परिस्थितियों से उपजी हुई एक आदत है ? व्यक्तिगत आदत को बदलना शायद उतना कठिन नहीं है जितना कठिन है सामाजिक समस्या के संदर्भ में उपजी हुई आदत को बदलना ।
नशे की समस्या आज विश्वव्यापी समस्या है । इसके परिणाम भी भयंकर रूप में सामने आ रहे हैं । सोवियत दैनिक 'सोवियतस्काया' के अनुसार मानसिक कमजोरियों से ग्रस्त बच्चों की संख्या बढ़ रही है । इसका कारण पुरुषों और महिलाओं में शराब की आदत की वृद्धि माना गया है । वाराणासी में किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार युवा पीढ़ी नशे की प्रवृत्ति से सर्वाधिक ग्रस्त है। सर्वेक्षण से इस बात का भी पता चला शिक्षा नशे पर लगाम लगाने में समर्थ नहीं है । शिक्षा का स्तर जैसे बढ़ता गया, वैसे ही नशे की प्रवृत्ति भी बढ़ती गई।
ज्वलन्त प्रश्न
नशे की आदत संक्रामक बीमारी जैसी है | वह बढ़ती ही जा रही है। अमेरिका ने अपने नागरिकों को कोकीन, मारिजुआना और हिरोइन से मुक्त रखने के लिए सन् १९८० में एक अरब डॉलर खर्च किए । सन् १९८८ तक यह खर्च बढ़ता चला गया । सन् १९८९ में और बड़ी योजना सामने आई है। जैसे-जैसे नशे पर रोक लगने की बात बढ़ी है वैसे-वैसे नशीले पदार्थों की मात्रा
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