________________
५२ आमंत्रण आरोग्य को
नहीं होता । आज गांधीवादी नीतियों का न कोई निर्णायक है और न कोई नियंत्रक
मेरे पीछे संप्रदाय हो या न हो- ये दोनों चिन्तन सापेक्ष हैं। इन्हें निरपेक्ष मानकर चलना हितकर नहीं है । अपने पवित्र उद्देश्य और अहिंसात्मक नीति के साथ केई संप्रदाय चले तो उसमें कठिनाई क्या है ? यदि इनकी अवहेलना कर चले तो उसे चलाने का अर्थ ही क्या है ?
जरूरत है एक मोड़ की
गांधीवाद चले या न चले, यह मेरे चिन्तन का विषय नहीं है । मेरे चिन्तन का बिन्दु यह है- विकेन्द्रित सत्ता और विकेन्द्रित अर्थनीति तथा उद्योग का विकेन्द्रीकरण समाज के लिए अधिक कल्याणकारी है । केन्द्रीकरण की नीति ने समाज को यांत्रिक बना दिया है । यंत्र मनुष्य पर हावी होता जा रहा है। रोबोट का शिकंजा फैलता जा रहा है और मनुष्य सिकुड़ता जा रहा है । चेतना का यह अवमूल्यन आज के भौतिकवादी दृष्टिकोण की फलश्रुति है । इस स्थिति का सामना करने के लिए कोई भी हिंसात्मक नीति सफल नहीं हो सकती । राजनीति और समाज के क्षेत्र में कोई भी ऐसा संगठन नहीं है, जो सत्याग्रह
और हिंसात्मक नीति के द्वारा केन्द्रीकरण की नीति में नया मोड़ ला सके । आज सचमुच एक मोड़ की जरूरत है । मैं मानता हूं कि गांधी जैसे व्यक्ति को पैदा नहीं किया जा सकता, वह स्वयं पैदा होता है । परंपरा व्यक्तित्वों का निर्माण करती है-कभी निरन्तर और कभी सान्तर—पर उसमें विच्छेद नहीं होता । परंपरा का अभाव विच्छेद की स्थिति पैदा कर देता है । मैं परंपरा का समर्थक हूं तो साथ-साथ उसके व्यवस्था पक्ष का भी समर्थक हूं | यह मुझे कभी वांछनीय नहीं है कि परंपरा चले और उसका कोई नियंता न हो |
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org