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जरूरत है आत्ममंथन की
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विचार के अनुसार धर्म को स्वीकार कर सकता है और छोड़ सकता है किन्तु वर्तमान में धर्म-परिवर्तन का आधार विचार परिवर्तन कम है, परिस्थिति का दबाव, बलप्रयोग या प्रलोभन अधिक है । समझा-बुझाकर कोई धर्म-परिवर्तन कराए अथवा समझ-बूझकर कोई धर्म-परिवर्तन करे, उस स्थिति में स्वतंत्रता के सामने प्रश्नचिह्न नहीं लग सकता । हरिजन धर्म-परिवर्तन कर रहे हैं | वह विचारपरिवर्तन नहीं है । उनके सामने परिस्थिति की बाध्यता है । सवर्ण लोगों का अहं इतना प्रबल है कि वे हरिजनों को मानवीय धरातल पर समानता देने को तैयार नहीं है । कोई हरिजन घोड़े पर बैठकर बारात निकाले, उससे भी उनके अहं को चोट पहुंचती है । इस परिस्थिति की बाध्यता से क्या व्यक्तिगत स्वतनता का सम्मान हो रहा है ? परतंत्रता के इतने निमित्त और हेतु हैं कि स्वतंत्रता बार-बार प्रश्नों के घेरे में आ जाती है । उसका बहुत मूल्य है । वह मनुष्य की सर्वोच्च उपलब्धि है | इस उपलब्धि का स्मृतिकार ने मूल्यांकन किया था
सर्वं परवशं दुःखं, सर्वमात्मवशं सुखम् । स्वतन्त्रता सबसे बड़ा सुख है। कितनी कठिन है उसकी प्राप्ति और कितनी कठिन है उसकी सुरक्षा । इसका आत्ममंथन करना है हर व्यक्ति को और पूरे समाज को ।
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