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आमंत्रण आरोग्य को
परिवर्तित होता है विचार
सिद्धान्त की सत्यता और असत्यता का निर्णय देने.वाला कोई भी न्यायाधीश उपलब्ध नहीं है | इस बिन्दु पर विचार की सीमा को समझना जरूरी है । कोई भी विचार समग्र या परिपूर्ण नहीं होता | हर विचार समग्र का एक अंश होता है इसलिए उसके साथ सापेक्षता की सीमा जुड़ी रहती है । यदि विचार समग्र होता तो वह निरपेक्ष होता | यदि वह निरपेक्ष होता तो विचार यानि परिवर्तनशील नहीं होता | मार्क्सवाद हो या गांधीवाद, आखिर एक विचार है । उसके साथ परिवर्तन की रेखा जुड़ी हुई है । मार्क्सवाद का सपना अपरिवर्तन के साथ जुड़ा हआ लगता था । एक शती भी पूरी नहीं हुई कि वह बदलाव के चौराहे पर खड़ा हो गया है । जिस मजदूर की शोषण-व्यथा को आधार बनाकर मार्क्सवाद ने जन्म लिया था, उसी मजदूर का शोषण मार्क्सवादी शासन-प्रणाली में हो. इससे बड़ा आश्चर्य क्या हो सकता है ?
मार्क्सवाद की विडंबना
चीन की घटनाओं ने विश्व को चौंकाया है । वहां सत्ता के सिंहासन पर आसीन लोग राजसी ठाट भोग रहे हैं और सामान्य आदमी को तामसिक रोटियां भी नसीब नहीं हैं । यह दूरी मार्क्सवादी दर्शन में नहीं हो सकती । पहले माना जाता था- यह दूरी वहां नहीं है । छात्र आंदोलन ने स्पष्ट कर दिया यह दूरी वहां बनी हुई है और बढ़ रही है । उस दूरी की गाथा को जागतिक राजनीति के सामने रखना ही तो छात्रों का अपराध था । ऐशो-आराम का जीवन जीने वाले सत्ताधीश कभी नहीं चाहते कि उनके वैभव पर कोई आंच आए अथवा उनके वैभव पर कोई अंगुली उठाए । बंदूक की शक्ति में विश्वास रखने वाले लोग करुणा की आस्था में नहीं जीते । क्रूरता के साथ उनका निकट सम्बन्ध होता है। यदि विचार को परिवर्तनशील माना जाता तो वह दमनचक्र का आधार नहीं बनता । मनुष्य इस भूल को दोहराता आया है । वह परिवर्तनशील को शाश्वत मानकर चल रहा है । यह भ्रांति पहले भी खतरनाक थी और आज भी उतनी ही खतरनाक है । क्या इस खतरनाक मोड़ पर होने वाली दुर्घटनाओं को रोका जा सकेगा ?
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